अब एक नई जूडिशल पहल आदिवासी बहुल झारखंड राज्य में सूरी हो रही है । और इस पहल से झारखंड के सभी जिलों में मुस्लिम लोगों के लिए एक नया जूडिशल सिस्टम लागू होगा।

इस नए जूडिशल सिस्टम को दारुल कजा कहा जा रहा है । दारुल कजा, दैनिक भास्कर में छपी सूचना के अनुसार,की शाखाएं हर ज़िला में खोली जाएगी। 

कृपया ध्यान दे ।मुस्लिम समाज में तलाक, जमीन-जायदाद समेत पारिवारिक विवाद के मसलों को शरिया कानून के तहत सुलझाने के लिए एदार-ए-शरिया झारखंड राज्य के हर जिले में दारुल कजा व दारुल इफ्ता शाखा स्थापित कर रही है ।

इसका मतलब ये हुवा की मुसलमान लोगों का सरिया क़ानून के अनुसार ये दारुल कजा व दारुल इफ्ता शाखा काम करेगी । और मुसलमान लोगों को अब भारत के जूडिशल सिस्टम से हट कर अपना सरिया क़ानून के तहत दारुल कजा व दारुल इफ्ता केस रेजिस्टर कर सुनवाई करेगी।

इसका एक संदेश ये दिया जा रहा है की लोगों के छोटे-छोटे मसलों के निपटारा के लिए मुस्लिम लोगों को भारत के कोर्ट के चक्कर न लगाने पड़े।लॉजिक दिया गया है की उससे मुस्लिम लोगों को कोर्ट का चक्र नही लगाना होगा। साथ ही कोर्ट पर पड़ने वाला बोझ भी कम होगा। 

कृपया तथ्य को समझे ।अभी तक जमशेदपुर, रांची, धनबाद, दुमका, हजारीबाग, कोडरमा, लोहरदग्गा, राजमहल (साहिबगंज) और बोकारो में ही दारुल कजा व दारुल इफ्ता की शाखा है। 

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आब वहीं मार्च 2022 तक डाल्टनगंज, गोड्डा, मधुपुर और जामताड़ा में शाखाएं खोली जाएंगी। एदार-ए-शरिया झारखंड के नाजिमे आला सह चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर मौलाना कुतुबुद्दीन रिजवी ने बताया कि मुस्लिम समुदाय की मांग पर धार्मिक व सामाजिक जरूरतों के मद्देनजर निर्णय लिया गया है।

जमशेदपुर में शहर काजी मुफ्ती आबिद हुसैन ने  मीडिया को बताया कि “दारुल कजा न सिर्फ मुसलमान, बल्कि देश के लिए भी फायदेमंद है। देश में 3.44 लाख मामले लंबित हैं। मुसलमान घरेलू मामलों को दारुल कजा में हल करा कोर्ट का बोझ हल्का कर रहा है।”

मौलाना कुतुबुद्दीन रिजवी, एदार-ए- शरीया झारखंड के नाजिमे आला सह चीफ एमडी दारुल कजा ने बताया कि मुसलमानों के मामलों को हल कर न्यायालय का बोझ कम करने का काम कर रहा है। इसलिए जिन इलाकों में दारुल कजा नहीं है, वहां इसकी शुरुआत होगी।

दारुल कजा में अर्जी आने के बाद पहले ये देखा जाता है कि मामला दारुल कजा के लायक है या नहीं। फिर इसे रजिस्टर में दर्ज किया जाता है। इसकी अलग से फाइल बनाई जाती है। इसके बाद दूसरे पक्ष को इसकी सूचना दी जाती है और कहा जाता है कि वह भी अपनी बातों को रखे। फैसला के बाद अगले 90 दिनों के अंदर इस फैसले के खिलाफ अपील की जा सकती है।

जरूरत पड़ने पर कोर्ट में भेज दिया जाता है। वहां दोनों पक्ष अपना बयान देते हैं, लेकिन जब तक कोर्ट से सीधे काजी को कोई हिदायत न मिले, काजी कोर्ट में किसी भी पक्ष के तरफ से वजाहत (गवाही) के लिए नहीं जाते।

दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट के अनुसार :

एक दारुल कजा में 5 सदस्य होते हैं। 5 सदस्यों के बीच एक अध्यक्ष होता है, जिसे काजी कहा जाता है।
दारुल कजा का सदस्य बनने के लिए मुस्लिम धर्म का जानकार होना चाहिए।
शहर के बुद्धजीवियों की आम राय से अध्यक्ष और सदस्यों का मनोनयन किया जाता है।
दारुल कजा शरियत (धर्म) के हवाले से फैसला सुनाती है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी दारुल कजा की स्थापना करता है।

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