आपको अपनी राजनीति चमकानी है... चमकाईये न. किसने मना किया है? अख़बार बेचनी है... बेचिये न. किसने मना किया है? लेकिन जहाँ पूरी दुनिया सकारात्मकता, रचनात्मकता और क्रियात्मकता के दौर में आसमान छू रही है वहाँ ये मनहूसियत भरी बातें आपकी ही क्षमता पर सवाल खड़े करती है. चाहे भाजपा हो या झामुमो लेकिन सत्ता के आँख में जैसे रतौंधी हो जाता है कि किसी की उगाही नज़र नहीं आती. लेकिन अपनी क्षमता पर सवाल उठायेंगे नहीं. उसके बाद भी यदि लगता है कि जनता भूखों मरेगी और आपको कुछ करना है नहीं उसके लिये साथ ही आप कुर्सी से भी चिपके रहेंगे (आप मतलब दोनों - भाजपा और झामुमो) तो चिपके रहिये न. जनता को उसके हाल पर छोड़ दीजिये पर अपना मुँह बन्द रखिये. हौसला मत तोड़िये.

एक अनुरोध माननीय मुख्यमंत्री श्रीमान हेमन्त सोरेन जी से. पता नहीं ऐसा डायलॉग बोलने का आईडिया आपको देता कौन है? परन्तु कम-से-कम आज जारी परिणाम देखकर सतर्क हो जाइये? विनम्र अनुरोध है.

...और सवाल तो अख़बार वालों से भी है.
.....अख़बार चलाते हैं या मुंशीगिरी हो रहा है. PRD से दाना-पानी चलता है... समझ सकता हूँ. पर ये भी क्या बात हुई कि, बस प्रेस रिलीज़ आये और चिपका दो. अकल गया भैंस चराने. यदि भूखों मरना पड़े तो पहले जिसे प्रवचन सुना रहे हैं न... वही पहले अख़बार खरीदना भी छोड़ देगा. कम-से-कम कुछ दिन तो रोटी-नमक खाकर ज़िन्दा रह लेगा. उसके बाद मर जायेगा.

भगवान कसम... आज इस समाचार को पढ़कर समझ में असली वजह आया. मुँह में भले ही कुछ हो लेकिन सभी के दिल और दिमाग़ में कचरा है. आज समझ में आया कि मुख्यमंत्री भले ही कोई हो लेकिन झारखण्ड नकारात्मक दिशा में क्यों जा रहा है?

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