झारखंड में सरकार चाहे भाजपा की हो या जेएमएम की,एक बात सत्य है की सरकार ने अपनी ही संस्थाओं को कर्ज दिये जाने से 24 हजार करोड़ का बकाया का भार उठा कर चल रही है. 

तथ्य ये है की झारखंड सरकार ने ग्रामीण बैंक, सरकारी कंपनियों और सहकारी संस्थानों को अलग राज्य बनने के बाद एक हजार एक सौ ग्यारह (1111.65) करोड़ का कर्ज दिया. 

इस कर्ज की राशि ब्याज दर को मिला कर वर्तमान में 24 हजार करोड़ से अधिक हो गयी है. निबंधक सह महालेखापरीक्षक की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार अपने राजकोषीय प्रदर्शन को ही बेहतर नहीं कर पा रही है. 

सरकार ने एफआरबीएम अधिनियम में दी गयी समय सीमा से काफी पहले अपने राजस्व घाटे को शून्य तक कम करने का लक्ष्य तय किया था. पिछले पांच वर्षों में राजस्व घाटा 3114 करोड़ कम किया गया है. 2020-21 के वित्तीय वर्ष में राजस्व व्यय का 83.3 फीसदी खर्च हुआ. इसमें 43 फीसदी सरकारी कर्मियों के वेतन, मजदूरी, ब्याज भुगतान औऱ् पेंशन की राशि में खर्च किया गया. 

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सरकार दस फीसदी तक वेतन भुगतान, पेंशन और अन्य मद पर खर्च को कम करने में सफल जरूर हुई है. पर सरकार के सामान्य सेवाओं का खर्च लगातार बढ़ रहा है. 2016 से2020 तक के पांच वर्षों में यह खर्च लगातार बढ़ा. 

सामाजिक सेवाओं में सरकार का खर्च 35 फीसदी, जबकि आर्थिक सेवाओं में सरकार का खर्च 36 फीसदी तक रहा. ऐसे में सरकार की तरफ से ली गयी ऊधार की राशि में से 62 फीसदी खर्च यानी 8466 करोड़ रुपये सिर्फ पूंजीगत व्यय पर किया गया. कर्ज और एडवांस की वापसी पर 25 फीसदी राशि खर्च की गयी. यानी सामान्य खर्चों में से 87 फीसदी राशि सरकार की तरफ से सेवाओं को बरकरार रखने पर खर्च कर दी गयी. शेष 13 फीसदी को लिये गये ऊधार के पुनर्भुगतान में खर्च किया गया. 

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