वित वर्ष 2022-23  के लिए झारखंड विधानसभा में गुरुवार को आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की गई. इस सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2022-23 में राज्य की आर्थिक विकास दर 7.8 फीसदी है और आनेवाले वित्तीय वर्ष 2023-24 में इसका 7.4 प्रतिशत का अनुमान है. 

सदन में रिपोर्ट पेश करते हुए रामेश्वर उरांव ने कहा कि आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक 2019-20 की आर्थिक मंदी और 2021-20 के कोरोना काल के बाद झारखंड की अर्थव्यवस्था एक बार पून: पटरी पर लौटी है.
 
वहीं राज्य का जीएसडीपी 2019-20 में केवल 1.1% बढ़ा और 2020-21 में 5.5% रहा. वैश्विक आपदा कोरोना ने पूरे देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया था. परंतु झारखंड में कोविड के दौरान संवेदनशील प्रबंधन के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था देश के अन्य हिस्सों की तुलना में कम प्रभावित हुई थी. एक ओर जहां देश की वास्तविक जीडीपी में 6.6% की गिरावट आई थी वहीं दूसरी ओर राज्य की वास्तविक जीडीपी में केवल 5.5 प्रतिशत की गिरावट आई थी.
 
वहीं 2021-22 में राज्य की विकास दर 8.2 फीसदी थी. झारखंड विधानसभा में बुधवार को पेश हुए 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में राज्य की आर्थिक वृद्धि दर 8.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है. बता दें इसमें कहा गया है कि राज्य बेहतर मानसून, सुधारों और विभिन्न योजनाओं के साथ भविष्य की चुनौतियों से निपटने में पूरी तरह से सक्षम है. वहीं यदी बात करें सरकार के आय एवं व्यय की तो झारखंड सरकार की आय के 6 स्रोत हैं. जिनमें केंद्रीय टैक्स में राज्य की हिस्सेदारी - 26.71 फीसदी है. राज्य सरकार की टैक्स से आय - 24.58 फीसदी है.

गैर-टैक्स मद से राज्य सरकार की आय - 13.61 फीसदी. वहीं सहायता अनुदान - 17.22 फीसदी है इसके बाद कर्ज - 17.80 फीसदी है. लोन रिकवरी और एडवांस - 0.08 फीसदी है. जबकि सरकार के खर्च मुख्य 14 मद. है वर्ष 2022-23 के बजट में सरकार ने सबसे ज्यादा पैसा 13.54 फीसदी शिक्षा पर खर्च किया है. तो वहीं ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग दूसरे नंबर पर रहा. जिसमें सरकार ने 12.59 फीसदी राशि खर्च किये. स्वास्थ्य एवं पेयजल पर सरकार ने 9.57 फीसदी राशि खर्च किये, जबकि पुलिस एवं आपदा प्रबंधन पर 8.36 फीसदी.
 
झारखंड सरकार के बजट का एक बड़ा हिस्सा पेंशन में खर्च होता है. पेंशन पर सरकार को अपने बजट का 7.96 फीसदी खर्च करना पड़ा था. समाज कल्याण पर झारखंड सरकार का खर्च 7.87 फीसदी रहा. वहीं शहरी विकास पर खर्च मात्र 3.02 फीसदी रहा. जबकि वन एवं पर्यावरण पर उसका खर्च सिर्फ 1.01 फीसदी है. इस तरह बजट में सरकार की ओर से सबसे कम खर्च वन एवं पर्यावरण विभाग पर ही की जाती है.

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