नैशनल यूनिवर्सिटी ओफ़ स्टडी एंड रीसर्च इन लॉ (NUSRL), राँची में विश्व आदिवासी दिवस 2024 की पूर्व संध्या पर सेंटर फ़ोर स्टडी एंड रीसर्च इन ट्राइबल राइट्स द्वारा "झारखंड में विशेष रूप से अति संवेदनशील जनजातीय समूहों के संदर्भ में स्वैच्छिक अलगाव और प्रारंभिक संपर्क में देशज व आदिवासी समूहों के अधिकारों की रक्षा" विषय पर पैनल चर्चा का आयोजन किया गया।
पैनलिस्टों में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची में मानव विज्ञान के सहायक प्रोफेसर डॉ. अभय सागर मिंज, आदिवासी कवियत्री एवं लेखिका श्रीमती वंदना टेटे , असुर जनजाति समुदाय की प्रतिनिधि श्रीमती सुषमा असुर और जनजातीय मुद्दों के स्वतंत्र शोधकर्ता श्री सी.आर. बिजोय मुख्य रूप से शामिल हुए।
कार्यक्रम की शुरुआत और अतिथियों का स्वागत पारंपरिक तरीके से अंगवस्त्र और स्मृतिचिन्ह देकर किया गया।
डॉ. अभय सागर मिंज के कहा की जनजातीय समुदायों का विकास उनके स्वनिर्णय और उनके विवेक अनुसार हो.
श्रीमती वंदना टेटे ने आदिम जनजाति से सम्बंधित प्रचलित पूर्वाग्रहों एवं मिथ्याओं पर प्रकाश डाला और उन्हें अपने सामाजिक एवं सांस्कृतिक तौर- तरीके से जीने की अधिकार देने की बात कही.
श्री सी .आर. बिजोय ने विश्व के आदिवासी समूहों के सन्दर्भ में कहा की आदिवासियों ने किसी भी सभ्यता को ना पराधीन किया और ना ही पराधीनता स्वीकार की , पर सदैव पराधीन बनाये गए. उन्होंने कहा की २१ वि सदी में भी राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय कानूनों द्वारा निर्धारित मापदंडो से कई आदिवासी समुदाय अभी भी बाहर है, और भारत में पांचवी एवं छठीं अनुसूची के संरक्षण एवं संवर्धन से भी वंचित है.
श्रीमती सुषमा असुर ने असुर समुदाय पर प्रचलित मिथ्याओं को दूर किया , साथ ही उन्होंने कहा की सरकारी योजनाओं का समुचित लाभ से वे अभी भी वंचित है. उन्होंने असुर एवं अन्य आदिम जनजातियों की घटती जनसँख्या पर चिंता जाहिर की और उपस्तिथ विधार्थियों और शोधार्थियों से उनके सर्वांगीण विकास पर शोध करने को प्रोत्साहित किया.
इस कार्यक्रम में एनयूएसआरएल के कुलपति प्रो.(डॉ.) अशोक रामप्पा पाटिल, रजिस्ट्रार सह सीएसआरटीआर के संयोजक डॉ. जिसू केतन पटनायक, सदस्य सहायक प्रो. राम चंद्र उरांव और बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के शिक्षकगण, विद्यार्थी, एवं शोधार्थी शामिल हुए।
कार्यक्रम का समापन प्रो. राम चंद्र उरांव द्वारा धन्यवाद ज्ञापन द्वारा किया गया . इस कार्यक्रम को सफल बनाने में सीएसआरटीआर के सदस्य एवं एनयूएसआरएल के अन्य छात्रों का अहम योगदान रहा।