राज्यपाल के सम्बोधन के मुख्य बिन्दुः
रउरे मनके जोहार! आप सभी को मेरा नमस्कार!
सबसे पहले, मैं आप सभी को “विश्व आदिवासी दिवस” की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ। यह दिन हम सबके लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारे आदिवासी समाज की संस्कृति, परंपराओं, और उनके अद्वितीय योगदान का उत्सव मनाने का अवसर प्रदान करता है।
आज, मुझे बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान, राँची में आयोजित इस दो दिवसीय “झारखण्ड आदिवासी महोत्सव-2024” में आप सबके बीच उपस्थित होकर अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है। मैं इस अवसर पर देश के कोने-कोने से आए कलाकारों, शिल्पकारों और चित्रकारों का हार्दिक स्वागत करता हूँ, जिन्होंने भारी वर्षा के बावजूद इस महोत्सव को सफल बनाने में अपना अमूल्य योगदान दिया है।
मुझे 31 जुलाई, 2024 को इस सुंदर प्रदेश के राज्यपाल का शपथ ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। शपथ लेने से पहले, मैंने भगवान बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए यहाँ का आया था। धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा केवल झारखण्ड के ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने अपने अल्पायु में ही इतिहास रच दिया और मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान दिया। मैं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को पूरे देश में "जनजातीय गौरव दिवस" के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
  झारखण्ड की धरती वीरों की भूमि रही है। यहाँ की माटी में जन्में बीर बुधु भगत, सिद्धो-कान्हु, चाँद-भैरव, फूलो-झान्हो, और जतरा उराँव जैसे महान सपूतों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उन सभी के बलिदानों को स्मरण करते हुए, मैं उनके प्रति अपनी श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ।
हमारे जनजातीय समुदाय का इतिहास गौरवशाली रहा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका अद्वितीय रही है। उनकी वीरता और पराक्रम की गाथाएँ भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।
जनजातियों द्वारा संरक्षित कला, संस्कृति, लोक साहित्य और रीति-रिवाज न केवल हमारे देश, बल्कि विश्वभर में ख्यातिप्राप्त हैं। उनका पर्यावरणीय ज्ञान और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व का दृष्टिकोण हम सभी के लिए प्रेरणादायक है।
झारखण्ड राज्य की 3.28 करोड़ से अधिक की जनसंख्या में आदिवासी समुदाय का लगभग 27 प्रतिशत हिस्सा है। 32 प्रकार की अनुसूचित जनजातियाँ यहाँ रहती हैं, जिनमें से 8 PVTGs (Particularly Vulnerable Tribal Groups) भी शामिल हैं। यह समाज हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा है, जिन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान और संस्कृति के माध्यम से हमारे देश की विविधता को और भी समृद्ध किया है।
हालांकि, आज भी हमारे आदिवासी समुदाय को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दों पर हमें और अधिक काम करने की आवश्यकता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे आदिवासी भाई-बहनों को सरकार द्वारा संचालित कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिले, और वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें।
हम सभी को आदिवासी समुदाय की संस्कृति पर गर्व होना चाहिए और इसे संरक्षित रखने का संकल्प लेना चाहिए। मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि आदिवासी समाज में दहेज-प्रथा जैसी कुरीतियाँ नहीं हैं, जो एक अनुकरणीय उदाहरण है लेकिन विडम्बना है कि जनजातीय समाज में डायन-प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियाँ आज भी मौजूद हैं, जिसे जागरूक होकर हम सबको दूर करना होगा।
इस अवसर पर, मैं सभी से आग्रह करता हूँ कि वे शिक्षा के प्रति और अधिक जागरूक हों। शिक्षा किसी भी समाज की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सरकार द्वारा इस दिशा में कई छात्रवृत्ति योजनाएँ संचालित हैं और हमारे छात्रों को समय पर छात्रवृत्ति का लाभ मिले, यह सुनिश्चित हो।
इतिहास इस बात का गवाह है कि हमारे आदिवासी समुदाय के कई लोगों ने विषम परिस्थितियों में भी शिक्षा ग्रहण की है। हमारे देश की माननीया राष्ट्रपति महोदया और झारखण्ड राज्य की पूर्व राज्यपाल, आदरणीया श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी ने भी विषम परिस्थितियों में उच्च शिक्षा प्राप्त की और वे अपने गाँव की पहली महिला बनीं जिन्होंने कॉलेज में प्रवेश लिया। वे सभी के लिए प्रेरणा हैं। आज, हमारे पास पहले से बेहतर शिक्षा का माहौल है। इसलिए, अधिक से अधिक लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करें और समाज में अपने कार्यों से प्रेरणास्रोत बनकर उभरें।
जनजातीय समुदाय के पारंपरिक शासन व्यवस्था को राज्य में लागू किया जाना आवश्यक है। वर्तमान में देश में झारखण्ड एक मात्र ऐसा राज्य है जहां PESA कानून लागू नहीं है। मैं माननीय मुख्यमंत्री जी से अनुरोध करता हूँ कि वे शीघ्र इस कानून को लागू कराएं।
आज टी०आर०आई०, जिसे अब डॉ० रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान के नाम से जाना जाता जाता है, द्वारा आज 12 पुस्तकों का लोकार्पण करना महत्वपूर्ण पहल है। आशा है कि ये लोकोपयोगी होगी। इस महोत्सव में पट्टा अधिनियम के तहत 11 जिलों में कुल 244 CFR का वितरण किया जा रहा है। सभी लाभुकों को बधाई देता हूँ।
अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन में संविधान के द्वारा राज्यपाल को विशेष दायित्व सौंपें गए हैं। इन दायित्वों के निर्वहन हेतु मैं प्रतिबद्ध हूँ।
अंत में, मैं यह कहना चाहूंगा कि हम सभी को आदिवासी समाज से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। उनका प्रकृति के प्रति प्रेम, जीवन के प्रति उनका सरल और संतुलित दृष्टिकोण हमें एक बेहतर भविष्य की ओर ले जा सकता है।
एक बार पुनः, आप सभी को “विश्व आदिवासी दिवस” की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं झारखण्ड आदिवासी महोत्सव के आयोजन हेतु आयोजकों को बधाई। जय हिन्द! जय झारखण्ड!