चंपई सोरेन अपने ज़िले सरायेकेला में दिखे। टाउन हॉल में बड़ी मीटिंग की। सैकड़ों समर्थक उनका जय जय कार करते दिखे। सरायेकेला टाउन हॉल के बाहर कई लंबे बैनर लगे थे। हर बैनर का रंग भगवा था। चंपाई सोरेन के तशबीर के नीचे लिखा था - “झारखंड आंदोलनकारी”। अभी वे झारखंड के मंत्री है। झारखंड मुक्ति मोर्चा( झामूमो) के बड़े नेता हैं। 

लेकिन कही भी, सरायेकेला टाउन हॉल के किसी छेत्र में ना तो झामूमो का हरे रंग का झंडा, ना चंपई के मंत्री पद लिखा बैनर दिखा। 

चंपई का कहना है कि विधायक दल की उस बैठक से लेकर आज तक, 'और आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक, इस सफर में उनके लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं.' - चंपाई सोरेन के ताजा रुख को लेकर हेमंत सोरेन की भी राय आ चुकी है, लेकिन अभी तक चंपाई सोरेन ने अपने अगले कदम के बारे में नहीं बताया है.ना ही वे झामूमो से या मंत्री पद से इस्तीफ़ा दिये हैं। कहते हैं कि वे अगस्त २७ तक सब बात साफ़ कर देंगे। ठीक है। तब तक सब को इंतिजार करना चाहिए। 

अब और अभी तक तो ये साफ़ है.क्या ? मान मनाउल चल रहा है? क्या चंपई सोरेन फिर हेमंत के साथ हाँथ मिला सकते हैं? 

 

चंपाई सोरेन का कहना है, मेरे पास तीन विकल्प थे... पहला, राजनीति से सन्यास लेना... दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना... और तीसरा, राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना. 

भले ही चंपाई सोरेन ने राजनीतिक तौर पर यथास्थिति बनाये रखी हो, लेकिन ये बात तो साफ हो चुकी है कि वो झारखंड मुक्ति मोर्चा में हेमंत सोरेन के खिलाफ बागी तो बन ही चुके हैं - और अब ये समझना महत्वपूर्ण हो गया है कि चंपाई सोरेन के बागी बन जाने का असर क्या क्या हो सकता है? और अगर चंपाई सोरेन कही फिर से हेमंत सोरेन के साथ ना मिले तो उनके बगावत का झारखंड मुक्ति मोर्चा पर क्या प्रभाव होगा?

सभी जानते हैं की चंपाई सोरेन झारखंड के कोल्हान क्षेत्र से आते हैं, और उस आदिवासी बहुल इलाके के चौथे नेता हैं जो झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे. 

अव्वल तो मधु कोड़ा भी कोल्हान क्षेत्र से आते हैं, जो एक दौर में अकेले दम पर झारखंड के मुख्यमंत्री बन गये थे - खास बात ये है झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और रघुबर दास भी कोल्हान क्षेत्र में ही राजनीति करते रहे हैं. 

चंपाई सोरेन को कोल्हान का शेर भी कहा जाता है. जब वो मुख्यमंत्री बने थे तो सोशल मीडिया पर उनके समर्थक उनको झारखंड का शेर कह कर संबोधित करने लगे थे - सबसे बड़ी बात ये है कि कोल्हान इलाके की करीब दर्जन भर आदिवासी बहुल विधानसभा सीटों पर चंपाई सोरेन का प्रभाव माना जाता है. 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में इन इलाके की सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों को मिले वोट इस बात के सबूत भी हैं. 

आज सवाल ये है कि आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव २०२४ में कोल्हान के शेर का क्या प्रभाव होगा? 

आकलन दो तरीके से किया जा सकता है. एक, चंपाई सोरेन की बगावत से हेमंत सोरेन को होने वाले नुकसान से - और दूसरा, चंपाई सोरेन का रुख जिधर राजनीतिक दल की तरफ होता है, उसके हिसाब से. चंपाई सोरेन ने जिन तीन विकल्पों का जिक्र किया है, उनमें से दो तो फिलहाल संभव होते नहीं लगते. 

उनका ताजा रुख तो यही बता रहा है कि वो राजनीति से संन्यास नहीं लेने जा रहे हैं - और चुनाव इतना नजदीक है कि अपनी नई पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतर पाना या खड़ा हो पाना भी बेहद मुश्किल लगता है. रही बात तीसरे विकल्प की, तो ले देकर व्यावहारिक तौर पर वही खुला भी लगता है. 

आगे के सफर में किसी के साथ हो लेना, चंपाई सोरेन ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में ऐसा ही लिखा है. और ये काफी हद तक संभव भी लगता है. 

बीजेपी की तरफ से ऐसी कोई बात खुल कर तो नहीं कही जा रही है, लेकिन सराएकेला टाउन हॉल के रोड पर चंपई के भगवा रंग मे लिपटा बैनर और झारखंड मुक्ति मोर्चा के रुख से तो तस्वीर ज्यादा साफ लग रही है. 

झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सोशल साइट X पर लिखा है, 'झारखंड भाजपा में मुख्यमंत्रियों की भरमार है... पूर्व पूर्व पूर्व पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल जी, पूर्व पूर्व पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा जी, पूर्व पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा जी (पीछे रास्ते से दल में), पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास जी... और उसके ऊपर सुपर CM हैं ही... हिमन्त बिस्वा सरमा जी... अब लग रहा है कि एक- दो और पूर्व को गवर्नर बना राज्य निकाला दिया जाएगा.' असल में, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास फिलहाल ओडीशा के राज्यपाल हैं, और JMM उनके बहाने ही बाबूलाल मरांडी पर कटाक्ष कर रहा है. 

बाबूलाल मरांडी फिलहाल झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष हैं. राजनीति में कुछ भी और कभी भी संभव है, इसलिए ऐसा तो नहीं लगता कि हेमंत सोरेन और उनके सलाहकार, चंपाई सोरेन के किसी दिन बागी हो जाने के बारे में नहीं सोचे होंगे. सामान्य रूप से चुनाव से ठीक पहले हेमंत सोरेन का कुछ दिनों के लिए मुख्यमंत्री बनना थोड़ा अजीब लगा था. 

फिर भी हेमंत सोरेन ने कमान अपने हाथ में लेने का फैसला किया - और फैसले तो सभी जोखिम भरे होते ही हैं. हेमंत सोरेन के रूख से ऐसा लगता है जैसे वो मान कर चल रहे थे कि जेल जाने के कारण उनको जो सहानुभूति मिल रही है,या मिली थी उसमें चंपाई सोरेन बहुत बड़ी बाधा नहीं बनने जा रहे हैं. 

निश्चित तौर पर बीजेपी से लड़ाई में चंपाई सोरेन का साथ होना फायदेमंद होता, लेकिन पूरा खेल पलट जाएगा ऐसा भी उन्हें नहीं लगता.ज़मीनी हकीकत भले कुछ और हो।

लेकिन अभी तक झामूमो का एक भी विधायक चंपई का समर्थन नहीं किया है। हेमंत सोरेन को हो सकता है कम या ज्यादा नुकसान हो, लेकिन चंपई के साथ आने की सूरत में बीजेपी को कोल्हान क्षेत्र में बड़ा फायदा तो हो ही सकता है. हेमंत सोरेन अगर कोल्हान के संभावित नुकसान की भरपाई की क्षमता रखते हैं, तो चंपाई सोरेन के चले जाने से ऐसा तो नहीं होगा कि सब कुछ चला जाएगा. 

ऐसे में कह सकते हैं कि चंपाई सोरेन बीजेपी के लिए ज्यादा फायदेमंद हैं, लेकिन हेमंत सोरेन के लिए नुकसानदेह.

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