30 सितंबर को योगदा आश्रम, रांची में हर्षोल्लास से भरे माहौल में लाहिड़ी महाशय के आविर्भाव का स्मरणोत्सव मनाया गया। स्मरणोत्सव सुबह, स्वामी स्वरूपानंद द्वारा संचालित एक विशेष ऑनलाइन सामूहिक ध्यान के साथ आरंभ हुई, जिसमें पूरे भारत से भक्तों ने भाग लिया।

इसके बाद सुबह 9:30 बजे से 11:30 बजे तक गुरु पूजा में उपस्थित भक्तों ने स्वामी अमरानंद और अन्य संन्यासिगणो द्वारा संचालित भजनों का आनंद लिया। भजन-संकीर्तन के बाद वहां उपस्थित भक्तों और संन्यासियों को प्रसाद वितरित किया गया।
 

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योगदा सत्संग परंपरा के परमगुरुओं में से एक, योगावतार लाहिड़ी महाशय, हिमालय के महान अमर योगी महावतार बाबाजी के शिष्य थे। महावतार बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय को क्रिया योग का प्राचीन लगभग-लुप्त विज्ञान बताया, तथा उन्हें सभी सच्चे साधकों को दीक्षा देने का निर्देश दिया। लाहिड़ी महाशय के जीवन की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि उन्होंने हिंदू, मुस्लिम, और ईसाई सभी धर्मों के आध्यात्मिक साधकों को क्रिया दीक्षा दी। वे एक गृहस्थ-योगी थे, जो अपने सभी पारिवारिक दायित्वों और सामाजिक कर्तव्यों को पूरा करते हुए भी भक्ति और ध्यान का संतुलित तथा संयमित जीवन व्यतीत करते थे। वह समाज के सांसारिक जीवन जी रहे हजारों पुरुषों और महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बने ।  उन्होंने समाज के पतित-दलितों के हृदयों मे आशा की नयी किरण जगायी।  स्वयं सर्वोच्च  ब्राह्मण जाति के होते हुए भी  उन्होंने अपने समय की कट्टर जाति व्यवस्था को तोड़ने की दिशा में साहसिक कदम उठाये थे। 

इस विशेष दिन का उत्सव शाम को 3 घंटे के ध्यान के साथ समाप्त हुआ, जहाँ ब्रह्मचारी एकत्वानंद ने लाहिड़ी महाशय के कुछ उपाख्यानों और शिक्षाओं को पढ़ा।

ध्यान और क्रिया योग के बारे में अधिक जानकारी के लिए: yssofindia.org

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