नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ (NUSRL) रांची में विश्वविद्यालय के पंचायती राज और महिला सशक्तिकरण केंद्र ने "Echoes of Injustice against Women: Unveiling Dark Testimony of Witch Hunts in Rural Jharkhand" विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया। 

इस कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के रूप में पद्मश्री छुटनी महतो ने भाग लिया। अन्य प्रतिभागियों में आकृति लकड़ा (स्वतंत्र शोधकर्ता), जेनी टोप्पो (सेंट ज़ेवियर कॉलेज, रांची में जनजातीय अध्ययन की व्याख्याता) और शिवानी प्रिया (सामाजिक कार्यकर्ता, बाल कल्याण संघ एनजीओ) शामिल थीं। 

परिचर्चा की अध्यक्षता डॉ. संगीता लाहा ने की, जबकि विश्वविद्यालय के सहायक रजिस्ट्रार डॉ. जिसु केतन पटनायक भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन से हुई, जिसमें बच्चों ने एक नाटक प्रस्तुत किया, जो गांवों में महिलाओं को डायन बताकर हत्या करने की वास्तविकता पर केंद्रित था। 

 

डॉ. संगीता लाहा ने बताया कि पंचायती राज विभाग में कई कार्य होते हैं, और इस केंद्र का उद्देश्य गांवों और पंचायतों की समस्याओं को समझना है। उन्होंने वीसी प्रो. अशोक आर. पाटिल का भी धन्यवाद किया जिन्होंने इस कार्यक्रम में सहायता की। पद्मश्री छुटनी महतो ने अपने संबोधन में अपने संघर्ष की कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि कैसे गांव वालों ने उन्हें डायन घोषित कर हत्या की योजना बनाई, जिसके चलते उन्हें अपने बच्चों के साथ भागना पड़ा। 
उन्होंने कहा, "आज जिसे समाज ने डायन घोषित किया, उसे ही पद्मश्री पुरस्कार मिला।" आकृति लकड़ा ने बताया कि उन्होंने इस विषय पर काफी काम किया है और कहा, "समाज में मजबूत महिलाओं को स्वीकार नहीं किया जाता।

 

"जेनी टोप्पो ने आंकड़ों के माध्यम से बताया कि झारखंड में आज भी डायन प्रथा जीवित है और कई मामले दर्ज नहीं होते हैं। शिवानी प्रिया ने बताया कि डायन के नाम पर की गई हत्या में केवल महिलाएं ही नहीं, बच्चे भी प्रभावित होते हैं। उन्होंने एक परिवार के उदाहरण के माध्यम से यह बताया कि कैसे एक बच्चे को अपनी मां की देखभाल करनी पड़ी जब गांव वालों ने उसे डायन बताया।

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