कृपया ध्यान दें।
10 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रोड शो एवं जनसभा। फिर 13 नवंबर को देवघर व गढ़वा में जनसभा।
क्या भाजपा का पलड़ा और भी मजबूत नही होगा? याद करें, 17 अक्टूबर को झारखण्ड विधानसभा चुनाव की घोषणा के बहुत पहले से ही भारतीय जनता पार्टी बहुत ही खूबसूरत तरीके से अपनी चुनावी रणनीति को तैयार करती रही है.
शिवराज सिंह चौहान और हेमंत विश्व सरमा को झारखण्ड भाजपा का प्रभारी एवं सह प्रभारी बनाने के बाद उसने सोची-समझी चाल चली. अपने तथाकथित ईगो को रास्ते में लाये बिना झारखण्ड के प्रभारी एवं सह प्रभारी शिवराज सिंह चौहान, हेमंत विश्व शर्मा और लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने न केवल झारखण्ड के हर एक शहर और सैकड़ों गाँव के गली-गली में घूमकर भाजपा के मुड़झाये जड़ों को मजबूत किया,बल्कि वे सभी रूठे कार्यकर्ताओं को मनाने के लिये घर-घर भी गये.
झारखण्ड भाजपा के नेताओं से पचासों कदम आगे बढ़कर बड़े भाजपा नेताओं में शामिल इन नेताओं ने चुनावी प्रबंधन में कोई कसर बाकी न छोड़ा. यह कहा जा सकता है कि “थिंक ग्लोबल एक्ट लोकल” की तर्ज पर झारखण्ड के सभी 81 विधानसभा सीटों के लिये भाजपा ने वैसी रणनीति तैयार की है जहाँ अधिकांश में उसका पलड़ा भारी दिखता है।
और यह रुझान केवल भाजपा नेताओं, कार्यकर्त्ताओं, समर्थकों या भाजपा के प्रशंसकों को ही नहीं बल्कि झारखण्ड में सत्तारुड झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और वामपंथी दलों के नेताओं, कार्यकर्ताओं को भी महसूस होने लगा है.
3 नवम्बर को अमित शाह ने भाजपा के संकल्प पत्र को रांची के होटल रेडिसन ब्लू में शानदार तरीके से जारी किया. उसके बाद प्रत्येक जिले में भाजपा के राज्य स्तर के शीर्ष नेताओं ने संवाददाताओं को संबोधित किया और इस बात का पूरा प्रयास किया कि भाजपा का संकल्प पत्र का संदेश जमीनी स्तर तक पहुँचे.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह के साथ ही अनेक केन्द्रीय मंत्री और योगी आदित्यनाथ सहित भाजपा शासित अनेक राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री भी युद्ध स्तर पर प्रदेश में भाजपा और एनडीए के अन्य गठबंधन दलों, आजसू, जेडीयू एवं लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रत्याशियों के प्रचार में जी-जान से जुटे हैं.
2019 के पिछले विधानसभा चुनाव की अपेक्षा यदि देखा जाये तो तब भाजपा और उसके प्रमुख सहयोगी आजसू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. इसके अलावा एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर के साथ ही जैसे भाजपा का दिल भी टूटा था और दिमाग भी किसी और दुनिया में था.पर ऊपर से अति आत्मविश्वास साफ-साफ नज़र आ रहा था.
तब आपसी भीतरघात भी अलग ही कहानी कह रही थी. लेकिन आज 2024 में इन सभी से मुक्त होकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व, बड़े नेताओं के साथ ही प्रत्याशी, रणनीतिकार और पर्दे के आगे-पीछे अनेक जाने-अनजाने योद्धा अर्थात सभी मैदान में कूद पड़े हैं.
दूसरी ओर यदि इंडी गठबंधन के दृष्टिकोण से देखा जाये तो ऐसा लगता है कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा केवल हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन के बल पर टिकी है और कांग्रेस सहित राष्ट्रीय जनता दल, कम्युनिस्ट के नेता-प्रत्याशी उसके पीछे पिछलग्गू बनकर मैदान में तलवार भांज रहे हैं .
लेकिन ना तो उसकी कोई सटीक दिशा है न ही कोई वैसी दशा जिसमें थोड़ा भी विश्वास जगे. यदि ज़मीनी हालात को बयां किया जाये तो इंडी गठबंधन द्वारा अपनी जिस लड़ाई को लड़ा जा रहा है उसका श्रेय झामुमो को ही दिया जाना चाहिये.
उसपर भी नीम पर करैले वाली बात यह है कि झामुमो ने आंतरिक तौर पर जाने-अनजाने में वैसी रणनीति तैयार कर ली है जिसमें केवल हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन ही दो प्रमुख योद्धा के रूप में नजर आ रहे हैं.
कांग्रेस-राजद के नेताओं ने पता नहीं क्यों युद्ध के पहले ही हार मान लिया है या फिर सभी की नज़रों से ओझल होकर कुछ और ही खेल खेल रहे हैं.
मल्लिकार्जुन खड़गे ने 5 नवम्बर को झारखण्ड में दो जनसभाओं को संबोधित किया. राजधानी रांची के नजदीक कांके विधानसभा क्षेत्र में आयोजित जनसभा में कांग्रेस की व्यवस्था जिस तरीके से लुंज-पूंज थी उसे देखते हुए यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि कांग्रेस के रणनीतिकार पता नहीं क्यों झारखण्ड के चुनाव को इतने हल्के तरीके से ले रहे हैं.
यहाँ तक कि आमसभा को संबोधित करने के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को इस बात की भी जानकारी नहीं थी कि झारखण्ड विधानसभा में कितनी सीट है. उसी दिन शाम में कांग्रेस और इंडी गठबंधन के सभी दलों ने जिस प्रकार से बीएनआर चाणक्य होटल में अपने दो पन्ने के घोषणा पत्र को जारी किया और एक वोट के बदले साथ वायदे किये वह भी दिलचस्प है.
लेकिन इंडी गठबंधन के दलों के लिये यह नकारात्मक ही रहा. उस आयोजन की व्यवस्था अच्छी नहीं कहीं जा सकती. खास करके भाजपा के संकल्प पत्र को लॉन्च करने के मुकाबले तो यह आयोजन कहीं किसी स्तर का नहीं था.
13 नवम्बर को पहले चरण में 43 विधानसभा क्षेत्र में चुनाव निर्धारित है जबकि 20 नवम्बर को दूसरे चरण में 38 विधानसभा क्षेत्र में चुनाव होना निश्चित है. इस बीच अगले अगले 8 नवम्बर को लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी झारखण्ड आ रहे हैं जो जमशेदपुर में रोड शो करने के साथ ही कुछ जनसभाओं को भी संबोधित करेंगे.
इधर 10 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी झारखण्ड पहुँचेंगे. रांची में ओटीसी ग्राउंड से न्यू मार्केट रातू रोड तक उनका रोड शो होने के साथ ही प्रभात तारा मैदान में जनसभा प्रस्तावित है.
बोकारो, चन्दनक्यारी, गुमला आदि में प्रधानमंत्री की सभा के बाद झारखण्ड में भाजपा एवं एनडीए के पक्ष में तैयार होता माहौल और भी सुदृढ़ होगा, ऐसा लगता है.
भाजपा ने एक और चतुराई भरा कदम उठाते हुए 13 नवम्बर को देवघर और गढ़वा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सभा आयोजित की है और जिस स्मार्टली तरीके से भाजपा तारीखों का चयन करते हुए अपने कार्यक्रमों को आयोजित कर रही है उसके लिये भाजपा की प्रशंसा सभी भाजपा समर्थक कर रहें हैं.
होर्डिंग, बैनर, पोस्टर, प्रचार वाहन, सोशल मीडिया आदि में भी भाजपा के मुक़ाबले बाकियों की कोई तुलना नहीं. भाजपा रोटी, बेटी और माटी के स्लोगन के साथ मैदान में कूद चुकी है. इस मामले में भी झामुमो, कांग्रेस और राजद के पास स्लोगन का टोटा है.
कंगाली की स्थिति है. एक ही नारा “हेमंत दुबारा” के साथ झामुमो सामने है वही कांग्रेस अपने पुराने जंग लगे तलवार को भांज रही है.
मतलब लोकसभा वाला “हाथ बदलेगा हालात” का वही पुराना स्लोगन किस हद तक कांग्रेस की नैया पार लगायेगा... वही देखनेवाली बात होगी.
कुल मिलाकर सभी स्थितियों और ज़मीनी परिस्थितियों के साथ ही अबतक के परफॉरमेंस को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि रणनीति, आयोजन, योग्यता, कार्यकर्त्ताओं की एकजुटता और मनोबल के स्तर पर भाजपा, इंडी गठबंधन से मीलों आगे है.