नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ (NUSRL), रांची ने, कॉमिट टेक्नो-लीगल एलएलपी, नई दिल्ली के सहयोग से एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला "ब्रिजिंग इनोवेशन एंड आईपी: एकेडेमिया-इंडस्ट्री कोलैबोरेशन ऑन स्टैंडर्ड एसेंशियल पेटेंट्स (SEPs)" का सफल आयोजन किया। इस कार्यशाला का संचालन DPIIT-IPR चेयर, सेंटर फॉर स्टडी एंड रिसर्च इन इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (IPR) द्वारा किया गया।
कार्यक्रम का उद्घाटन NUSRL के माननीय *कुलपति प्रो. (डॉ.) अशोक आर. पाटिल* ने किया। इस अवसर पर प्रो. (डॉ.) एम.आर. श्रीनिवास मूर्ति, प्रो. (डॉ.) डॉ श्यामला कंडादाई, डॉ. आनंदकुमार शिंदे, डॉ. संचिता तिवारी, श्री अभिनव गुप्ता, तथा विश्वविद्यालय के अन्य सदस्य, शोधार्थी और छात्र उपस्थित थे।
अपने उद्घाटन भाषण में प्रो. पाटिल ने कहा कि SEPs के क्षेत्र में अकादमिक शोध और औद्योगिक सहयोग को बढ़ावा देना भारत के नवाचार केंद्र बनने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
*विशेषज्ञों ने अपने विचार सामने रखे*
*श्री निशांत शर्मा, लीड काउंसल (भारत)* – आईपी और लिटिगेशन, डॉल्बी लैबोरेटरीज, ने 4G, 5G, Wi-Fi, HEVC और Bluetooth जैसे साझा मानकों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ये मानक, जो Standard Setting Organizations (SSOs) द्वारा विकसित किए जाते हैं, अक्सर पेटेंट युक्त तकनीकों को शामिल करते हैं और बाद में वे स्टैंडर्ड एसेंशियल पेटेंट्स (SEPs) बन जाते हैं। उन्होंने FRAND (फेयर, रीज़नेबल और नॉन-डिस्क्रिमिनेटरी) शर्तों पर लाइसेंसिंग की आवश्यकता पर जोर दिया।
• चित्रा अय्यर, डायरेक्टर एवं लाइसेंसिंग प्रोग्राम लीडर, रॉयल फिलिप्स इंडिया, ने SEP लाइसेंसिंग की व्यवहारिक चुनौतियों पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि किस प्रकार लाइसेंसिंग वार्ताएं कई बार टकरावपूर्ण हो जाती हैं, विशेषकर जब टेक्नोलॉजी उपयोगकर्ता संवाद से बचते हैं या विलंब करते हैं।
• श्री सत्योकी कौंडिन्य, काउंसल – लाइसेंसिंग, लिटिगेशन, आईपी नीति और एडवोकेसी, नोकिया इंडिया, ने SEP लाइसेंसिंग के आर्थिक पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने "होल्ड-अप" और "होल्ड-आउट" जैसे परिदृश्यों की व्याख्या की और पारदर्शी एवं पूर्ववर्ती लाइसेंसिंग प्रणालियों की आवश्यकता पर बल दिया।
• श्री विवेक रंजन, पार्टनर, कॉमिट टेक्नो-लीगल एलएलपी, ने SEP लाइसेंसिंग को भारतीय संवैधानिक मूल्यों से जोड़ा। उन्होंने बताया कि कैसे FRAND शर्तें संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के अनुरूप हैं, और लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं को निष्पक्ष और जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है।
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इस कार्यक्रम में डॉ. सुजय कांडेमानी, वैज्ञानिक, ICAR-भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, रांची भी विशेष रूप से उपस्थित थे।
निष्कर्ष: नवाचार, कानून और नीति का संगम
यह कार्यशाला अकादमिक गहराई, कानूनी विश्लेषण और उद्योग विशेषज्ञता का अनूठा संगम सिद्ध हुई। वक्ताओं ने SEP और FRAND लाइसेंसिंग के तकनीकी, कानूनी और आर्थिक पहलुओं पर गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। जैसे-जैसे भारत वैश्विक प्रौद्योगिकी परिदृश्य में अग्रणी बनने की दिशा में अग्रसर है, ऐसे आयोजनों के माध्यम से भविष्य के नीतिनिर्माताओं, शोधकर्ताओं और कानूनी पेशेवरों को सशक्त बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।