हिंदी सिनेमा में जिस तरह से अमिताभ बच्चन ने वंबी पारी खेली है उसी तरह से अशोक कुमार ने भी कई दशकों तक सिल्वर स्क्रीन पर अपनी दमदार मौजूदगी कायम रखी थी। अशोक कुमार का जन्म 13 अक्टूबर 1911 को भागलपुर बिहार में हुआ था।जन्म के समय इनका नाम 'कुमुदलाल गांगुली' रखा गया। वहीं फिल्म इंडस्ट्री में वो अशोक कुमार के नाम से काम करने लगे। उन्हें प्यार से लोग 'दादामुनि (बड़ा भाई)' भी कहते थे।

टेक्नीशियन के रूप में काम करने आए थे

अशोक कुमार फिल्म इंडस्ट्री में काम तो करना चाहते थे, लेकिन एक्टर नहीं बल्कि टेक्नीशियन के रूप। उन दिनों अशोक कुमार के बहनोई सशाधर मुखर्जी मुंबई में 'बॉम्बे टॉकीज' में काम किया करते थे। उनकी वजह से अशोक कुमार मुंबई आ गए और बॉम्बे टॉकीज में ही 'लैब असिस्टेंट' के रूप में काम करने लगे।

कुमुदलाल से हो गए 'अशोक कुमार'

साल 1936 की बॉम्बे टॉकीज की फिल्म 'जीवन नैया' की शूटिंग शुरू होने से पहले ही उसकी हिरोइन देविका रानी और नजमुल हसन के बीच मतभेद हो गए। इसकी वजह से निर्माता हिमांशु राय ने नजमुल की जगह कुमुदलाल (अशोक कुमार) को फिल्म में बुलाया। हालांकि फिल्म के डायरेक्टर इस बात से नाखुश थे। पहली बार कुमुदलाल गांगुली का स्क्रीन नाम 'अशोक कुमार' रख दिया गया।

जब राजकपूर की पत्नी ने अशोक कुमार को देखने को उठाया था घूंघट

जिन दिनों राजकपूर की शादी हुई थी, उस वक्त अशोक कुमार सुपरस्टार थे. ये बात है सन् 1946 की. रिपोर्ट्स के मुताबिक, मंच पर राज कपूर और उनकी पत्नी कृष्णा कपूर मौजूद थीं।अचानक शोर मच गया कि उनकी शादी में अशोक कुमार आए हैं,तो कृष्णा ने अशोक कुमार की एक झलक पाने के लिए अपना घूंघट झट से उठा दिया था। राज कपूर को कृष्णा कपूर की इस उत्सुकता से बहुत ठेस पहुंची थी और उन्होंने कई दिनों तक नाराजगी में कृष्णा से बात भी नहीं की थी।

1937 मे अशोक कुमार को बांबे टॉकीज के बैनर तले प्रदर्शित फ़िल्म #अछूत_कन्या' में काम करने का मौका मिला। इस फ़िल्म में जीवन नैया के बाद 'देविका रानी' फिर से उनकी नायिका बनी। फ़िल्म मे अशोक कुमार एक ब्राह्मण युवक के किरदार मे थे, जिन्हें एक अछूत लड़की से प्यार हो जाता है। सामाजिक पृष्ठभूमि पर बनी यह फ़िल्म काफी पसंद की गई और इसके साथ ही अशोक कुमार बतौर अभिनेता फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इसके बाद देविका रानी के साथ अशोक कुमार ने कई फ़िल्मों में काम किया। इन फ़िल्मों में 1937 मे प्रदर्शित फ़िल्म इज्जत के अलावा फ़िल्म सावित्री (1938) और निर्मला (1938) जैसी फ़िल्में शामिल हैं। इन फ़िल्मों को दर्शको ने पसंद तो किया, लेकिन कामयाबी का श्रेय बजाए अशोक कुमार के #देविका_रानी को दिया गया। इसके बाद उन्होंने 1939 मे प्रदर्शित फ़िल्म कंगन, बंधन 1940 और झूला 1941 में अभिनेत्री लीला चिटनिश के साथ काम किया। इन फ़िल्मों में उनके अभिनय को काफी सराहा गया, जिसके बाद अशोक कुमार बतौर अभिनेता फ़िल्म इंडस्ट्री मे स्थापित हो गए।

किस्मत ने बॉक्स ऑफिस पर किया धमाल

साल 1943 में आई फिल्म #किस्मत (#kismat ने बॉक्स ऑफिस के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए थे। हर तरफ अशोक कुमार के नाम की चर्चा शुरू हो गई थी। अशोक कुमार निर्माताओं व निर्देशकों की पहली पसंद बन गए थे।
वे बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार थे जिसकी फिल्म ने एक करोड़ रुपये कमाए थे। इस फ़िल्म में अशोक कुमार हीरो की पांरपरिक छवि से बाहर निकल कर अपनी एक अलग छवि बनाई। इस फ़िल्म मे उन्होंने पहली बार एंटी हीरो की भूमिका निभाई जो दर्शको का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रही। किस्मत ने बॉक्स आफिस के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए कोलकाता के चित्रा सिनेमा हॉल में लगभग चार वर्ष तक लगातार चलने का रिकार्ड बनाया। बांबे टॉकीज के मालिक हिमांशु राय की मौत के बाद 1943 में अशोक कुमार #बॉम्बे_टाकीज को छोड़ फ़िल्मिस्तान स्टूडियो चले गए। वर्ष 1947 मे देविका रानी के बाम्बे टॉकीज छोड़ देने के बाद अशोक कुमार ने बतौर प्रोडक्शन चीफ बाम्बे टाकीज के बैनर तले मशाल जिद्दी और मजबूर जैसी कई फ़िल्मों का निर्माण किया। इसी दौरान बॉम्बे टॉकीज के बैनर तले उन्होंने 1949 में प्रदर्शित सुपरहिट फ़िल्म #महल का निर्माण किया। उस फ़िल्म की सफलता ने अभिनेत्री मधुबाला के साथ-साथ पार्श्व गायिका लतामंगेश्कर को भी शोहरत की बुंलदियों पर पहुंचा दिया था।

फिल्म निर्माण
पचास के दशक मे बाम्बे टॉकीज से अलग होने के बाद अशोक कुमार ने अपनी खुद की कंपनी शुरू की और जूपिटर थिएटर को भी खरीद लिया। अशोक कुमार प्रोडक्शन के बैनर तले उन्होंने सबसे पहली फ़िल्म समाज का निर्माण किया, लेकिन यह फ़िल्म बॉक्स आफिस पर बुरी तरह असफल रही। इसके बाद उन्होनें परिणीता भी बनाई। लगभग तीन वर्ष के बाद फ़िल्म निर्माण क्षेत्र में घाटा होने के कारण प्रोडक्शन कंपनी बंद कर दी।

क्लासिकल फिल्म बंदिनी
1953 में प्रदर्शित फ़िल्म परिणीता के निर्माण के दौरान फ़िल्म के निर्देशक बिमल राय के साथ उनकी अनबन हो गई थी। जिसके कारण उन्होंने बिमल राय के साथ काम करना बंद कर दिया, लेकिन अभिनेत्री नूतन के कहने पर अशोक कुमार ने एक बार फिर से बिमल रॉय के साथ 1963 मे प्रदर्शित फ़िल्म #बंदिनी में काम किया। यह फ़िल्म हिन्दी फ़िल्म के इतिहास में आज भी क्लासिक फ़िल्मों में शुमार की जाती है।

ज्वैल थीप में अलग अंदाज

1967 में प्रदर्शित फ़िल्म #ज्वैलथीफ. में अशोक कुमार के अभिनय का नया रूप दर्शको को देखने को मिला। इस फ़िल्म में वह अपने सिने कैरियर मे पहली बार खलनायक की भूमिका मे दिखाई दिए। इस फ़िल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। अभिनय में आई एकरुपता से बचने और खुद को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए अशोक कुमार ने खुद को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया।

रेल गाड़ी-रेल गाड़ी गाना भी गाया

इनमें 1968 मे प्रदर्शित फ़िल्म आर्शीवाद खास तौर पर उल्लेखनीय है। फ़िल्म में बेमिसाल अभिनय के लिए उनको सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस फ़िल्म में उनका गाया गाना रेल गाड़ी-रेल गाड़ी बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ।

दादामुनि और दूरदर्शन

1984 मे दूरदर्शन के इतिहास के पहले शोप ओपेरा #हमलोग में वह सीरियल के सूत्रधार की भूमिका मे दिखाई दिए और छोटे पर्दे पर भी उन्होंने दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया। दूरदर्शन के लिए ही दादामुनि ने भीमभवानी बहादुर शाह जफर और उजाले की ओर जैसे सीरियल मे भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया।

पुरस्कार व सम्मान
अशोक कुमार को दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फ़िल्म फेयर पुरस्कार से भी नवाजा गया। पहली बार राखी 1962 और दूसरी बार आर्शीवाद 1968। इसके अलावा 1966 मे प्रदर्शित फ़िल्म अफसाना के लिए वह सहायक अभिनेता के फ़िल्म फेयर अवार्ड से भी नवाजे गए। दादामुनि को हिन्दी सिनेमा के क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ठ सहयोग के लिए 1988 में हिन्दी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानितअशोक कुमार भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख अभिनेता रहे हैं। प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार भी आपके ही सगे भाई थे। लगभग छह दशक तक अपने बेमिसाल अभिनय से दर्शकों के दिल पर राज करने वाले अशोक कुमार का निधन 10 दिसम्बर 2001 को हुआ।

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