ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रभु यीशु या कहे जीसस का भारत से बहुत गहरा संबंध रहा है, खासकर बौद्ध धर्म से. इस संबंध में ओशो ने अपने प्रवचनों में जिक्र किया है. ओशो की किताब ’दि सायलेंट एक्‍सप्‍लोजन -दि अननोन लाइफ ऑफ जीसस में इसके विस्तार से जिक्र है. ओशो के अनुसार जीसस बुद्ध से कई प्रकार से संबंधित थे.ईसाइयत इसके बारे में बिलकुल बेखबर है कि जीसस निरंतर तीस वर्ष तक कहां थे? वे अपने तीसवें साल में अचानक प्रकट होते है और तैंतीसवें साल में तो उन्‍हें सूली पर चढ़ा दिया जाता है.

उनके जीवन के केवल तीन वर्षों का ही लेखा जोखा मिलता है.इसके अतिरिक्‍त एक या दोबार उनकी जीवन-संबंधी घटनाओं का उल्‍लेख मिलता है.पहला तो उस समय जब वे पैदा हुए थे—इस कहानी को सब लोग जानते है और दूसरा उल्‍लेख है जब सात साल की आयु में वे एक त्‍यौहार के समय बड़े मंदिर में जाते है.बस इन दोनों घटनाओं का ही पता है.इनके अतिरिक्‍त तीन साल तक वे उपदेश देते रहे.उनका शेष जीवन काल अज्ञात है.परंतु भारत के पास उनके जीवन काल से संबंधित अनेक परंपराएं हैं.

कश्‍मीर के एक बौद्ध विहार अज्ञातवास में रहे
कश्‍मीर के एक बौद्ध विहार में जीसस अज्ञातवास में रहे थे.इसके अनेक रिकार्ड मिलते है. कश्‍मीर की जनश्रुतियों में भी इसका उल्‍लेख है.इस अज्ञातवास में वे बौद्ध भिक्षु बनकर ध्‍यान कर रहे थे.अपने तीसवें वर्ष में वे जेरूसलेम में प्रकट होते हैं, इसके बाद इनको सूली पर चढ़ा दिया जाता है.ईसाईयों की कहानी के अनुसार जीसस का पुनर्जन्‍म होता है.परंतु प्रश्‍न यह है कि इस पुनर्जन्‍म के बाद दोबारा वे कहां गायब हो गये.ईसाइयत इसके बारे में बिलकुल मौन है कि इसके बाद वे कहां चले गए और उनकी स्‍वाभाविक मृत्‍यु कब हुई.

अपनी पुस्‍तक ‘’दि सर्पेंट ऑफ पैराडाइज’’, में एक फ्रांसीसी लेखक कहता है कि कोई नहीं जानता कि जीसस तीस साल तक कहां रहे और क्‍या करते रहे ? अपने तीसवें साल में उन्‍होंने उपदेश देना आरंभ किया.एक जनश्रुति के अनुसार इस समय वे ‘’कश्‍मीर’’ में थे.कश्‍मीर का मूल नाम है.‘’का’’ अर्थात ‘’जैसा’’, बराबर, और ‘’शीर’’ का अर्थ है ‘’सीरिया’’.

निकोलस नाटोविच नाम के रूसी यात्री ने भी लिखी है किताब
निकोलस नाटोविच नामक एक रूसी यात्री सन 1887 में भारत आया था.वह लद्दाख भी गया था. वहां जाकर वह बीमार हो गया था.इसलिए उसे वहां प्रसिद्ध ‘’हूमिस-गुम्‍पा‘’ में ठहराया गया था और वहां पर उसने बौद्ध साहित्‍य और बौद्ध शस्‍त्रों के कई ग्रंथ पढ़े.इनमें उसको जीसस के यहां आने के कई उल्‍लेख मिले.इन बौद्ध शास्‍त्रों में जीसस के उपदेशों की भी चर्चा की गई है.

बाद में इस फ्रांसीसी यात्री ने ‘’सेंट जीसस’’ नामक एक पुस्‍तक भी प्रकाशित की थी.इसमे उसने उन सब बातों का वर्णन किया है जिससे उसे मालूम हुआ कि जीसस लद्दाख तथा पूर्व के अन्‍य देशों में भी गए थे.

जीसस के रहने के कारण ही ‘’पहल गाव’’ नाम पड़ा.

ऐसा लिखित रिकार्ड मिलता है कि जीसस लद्दाख से चलकर, ऊंची बर्फीला पर्वतीय चोटियों को पार करके काश्‍मीर के पहल गाम नामक स्‍थान पर पहुंच.पहल गाम का अर्थ है ‘’गड़रियों का गांव’’ पहल गाम में वे अपने लोगों के साथ लंबे समय तक रहे.यही पर जीसस को ईज़राइल के खोये हुए कबीले के लोग मिले.ऐसा लिखा गया है कि जीसस के इस गांव में रहने के कारण ही इस का नाम ‘’पहल गाव’’ रखा गया.कश्‍मीरी भाषा में ‘’पहल’’ का अर्थ है गड़रिया और गाम का अर्थ गांव.इसके बाद जब जीसस श्रीनगर जा रहे थे तो उन्‍होंने ‘’ईश-मुकाम’’ नामक स्‍थान पर ठहर कर आराम किया था और उपदेश दिये थे.क्‍योंकि जीसस ने इस जगह पर आराम किया इसलिए उन्‍हीं के नाम पर इस स्‍थान का नाम हो गया ‘’ईश मुकाम’’।

जब जीसस सूली पर चढ़ाये गये तो उसके बाद उनका शरीर जिस गुफा में रखा गया था वहां से वे तीन दिन के बाद गायब हो गये.इसके बाद वे देखे गए—कम से कम आठ लोगों ने उनको नए शरीर में देखा.फिर वे गायब हो गए. ईसाइयत के पास ऐसा कोई रिकार्ड नहीं है कि जिससे मालूम हो कह वे कब मरे. जीसस फिर दोबारा काश्‍मीर आये और वहां पर 112 वर्ष की आयु तक जीवित रहे.और वहां पर अभी भी वह गांव है जहां उनकी मृत्यु हुई.

अरबी भाषा में जीसस को ‘’ईसस’’ कहा गया है.काश्‍मीर में उनको ‘’यूसा-आसफ़’’ कहा जाता था.उनकी कब्र पर भी लिखा गया है कि ‘’यह यूसा-आसफ़ की कब्र है जो दूर देश से यहां आकर रहा’’ और यहाँ भी संकेत मिलता है कि वह 1900साल पहले आया.

’सर्पेंट ऑफ पैराडाइज’’ किताब में भी है जिक्र
‘’सर्पेंट ऑफ पैराडाइज’’ के लेखक ने भी इस कब्र का देखा.वह कहता है कि ‘’जब मैं कब्र के पास पहुंचा तो सूर्यास्‍त हो रहा था. उस समय वहां के लोगों और बच्‍चों के चेहरे बड़े पावन दिखाई दे रहे थे.ऐसा लगता था जैसे वे प्राचीन समय के लोग हों—संभवत: वे ईज़राइल की खोई हुई उस जाति से संबंधित थे जो भारत आ गई थी.

जूते उतार कर जब मैं भीतर गया तो मुझे एक बहुत पुरानी कब्र दिखाई दी. उसकी रक्षा के लिए चारों और फिलीग्री की नक्‍काशी किए हुए पत्‍थर की दीवार खड़ी थी.दूसरी और पत्‍थर में एक पदचिह्न बना हुआ था—कहा जाता है कि वह यूसा-आसफ़ का पदचिह्न है.उसकी दीवार से शारदा लिपि में लिखा गया एक शिलालेख लटक रहा था जिसके नीचे अंग्रेजी अनुवाद में लिखा गया है—‘’यूसा-आसफ़ (खन्‍नयार.श्रीनगर) यह कब्र यहूदी है.भारत में कोई भी कब्र ऐसी नहीं है.उस कब्र की बनावट यहूदी है और कब्र के ऊपर यहूदी भाषा, हिब्रू में लिखा गया है.

योग से संभव है बिना मरे शरीर को मृत जैसी अवस्‍था में पहुंचाना
जीसस पूर्णत: संबुद्ध थे.इस पुनर्जन्‍म की घटना को ईसाई मताग्रही ठीक से समझ नहीं सकते किंतु योग द्वारा यह संभव हो सकता है.योग द्वारा बिना मरे शरीर को मृत अवस्‍था में पहुंचाया जा सकता है.सांस को चलना बंद हो जाता है, ह्रदय की धड़कन और नाड़ी की गति भी बंद की जा सकती है.इस प्रकार की प्रक्रिया के लिए योग की किसी गहन विधि का प्रयोग किया क्‍योंकि अगर वे सचमुच मर जाते तो उनके पुन जीवित होने की कोई संभावना नहीं थी.सूली लगाने वालों ने जब यह समझा कि वे मर गए है तो उन्‍होंने जीसस को उतार कर उनके अनुयायियों का दे दिया.तब एक परंपरागत कर्मकांड के अनुसार शरीर को एक गुफा में तीन दिन के लिए रखा गया.किंतु तीसरे दिन गुफा को खाली पाया गया.जीसस गायब थे.

सूली पर चढ़ाये जाने से जीसस का मन बहुत परिवर्तित हो गया.इसके बाद वे पूर्णत: मौन हो गए.न उन्‍हें पैगंबर बनने में कोई दिलचस्‍पी रही न उपदेशक बनने में.बस वे तो मौन हो गए.इसीलिए इसके बाद उनके बारे में कुछ भी पता नहीं है.तब वे भारत में रहने लगे.भारत में एक परंपरा है कि बाइबल में भी कि यहूदियों का एक कबीला गायब हो गया और उसको खोजने के लिए बहुत लोग भेजे गए थे.वास्‍तव में कश्‍मीरी अपने चेहरे-मोहरे और अपने खून से मूलत: यहूदी ही है.

इसे ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रभु यीशु या कहे जीसस का भारत से बहुत गहरा संबंध रहा है, खासकर बौद्ध धर्म से. इस संबंध में ओशो ने अपने प्रवचनों में जिक्र किया है. ओशो की किताब ’दि सायलेंट एक्‍सप्‍लोजन -दि अननोन लाइफ ऑफ जीसस में इसके विस्तार से जिक्र है. ओशो के अनुसार जीसस बुद्ध से कई प्रकार से संबंधित थे.ईसाइयत इसके बारे में बिलकुल बेखबर है कि जीसस निरंतर तीस वर्ष तक कहां थे? वे अपने तीसवें साल में अचानक प्रकट होते है और तैंतीसवें साल में तो उन्‍हें सूली पर चढ़ा दिया जाता है.

उनके जीवन के केवल तीन वर्षों का ही लेखा जोखा मिलता है.इसके अतिरिक्‍त एक या दोबार उनकी जीवन-संबंधी घटनाओं का उल्‍लेख मिलता है.पहला तो उस समय जब वे पैदा हुए थे—इस कहानी को सब लोग जानते है और दूसरा उल्‍लेख है जब सात साल की आयु में वे एक त्‍यौहार के समय बड़े मंदिर में जाते है.बस इन दोनों घटनाओं का ही पता है.इनके अतिरिक्‍त तीन साल तक वे उपदेश देते रहे.उनका शेष जीवन काल अज्ञात है.परंतु भारत के पास उनके जीवन काल से संबंधित अनेक परंपराएं हैं.

कश्‍मीर के एक बौद्ध विहार अज्ञातवास में रहे
कश्‍मीर के एक बौद्ध विहार में जीसस अज्ञातवास में रहे थे.इसके अनेक रिकार्ड मिलते है. कश्‍मीर की जनश्रुतियों में भी इसका उल्‍लेख है.इस अज्ञातवास में वे बौद्ध भिक्षु बनकर ध्‍यान कर रहे थे.अपने तीसवें वर्ष में वे जेरूसलेम में प्रकट होते हैं, इसके बाद इनको सूली पर चढ़ा दिया जाता है.ईसाईयों की कहानी के अनुसार जीसस का पुनर्जन्‍म होता है.परंतु प्रश्‍न यह है कि इस पुनर्जन्‍म के बाद दोबारा वे कहां गायब हो गये.ईसाइयत इसके बारे में बिलकुल मौन है कि इसके बाद वे कहां चले गए और उनकी स्‍वाभाविक मृत्‍यु कब हुई.

अपनी पुस्‍तक ‘’दि सर्पेंट ऑफ पैराडाइज’’, में एक फ्रांसीसी लेखक कहता है कि कोई नहीं जानता कि जीसस तीस साल तक कहां रहे और क्‍या करते रहे ? अपने तीसवें साल में उन्‍होंने उपदेश देना आरंभ किया.एक जनश्रुति के अनुसार इस समय वे ‘’कश्‍मीर’’ में थे.कश्‍मीर का मूल नाम है.‘’का’’ अर्थात ‘’जैसा’’, बराबर, और ‘’शीर’’ का अर्थ है ‘’सीरिया’’.

निकोलस नाटोविच नाम के रूसी यात्री ने भी लिखी है किताब
निकोलस नाटोविच नामक एक रूसी यात्री सन 1887 में भारत आया था.वह लद्दाख भी गया था. वहां जाकर वह बीमार हो गया था.इसलिए उसे वहां प्रसिद्ध ‘’हूमिस-गुम्‍पा‘’ में ठहराया गया था और वहां पर उसने बौद्ध साहित्‍य और बौद्ध शस्‍त्रों के कई ग्रंथ पढ़े.इनमें उसको जीसस के यहां आने के कई उल्‍लेख मिले.इन बौद्ध शास्‍त्रों में जीसस के उपदेशों की भी चर्चा की गई है.

बाद में इस फ्रांसीसी यात्री ने ‘’सेंट जीसस’’ नामक एक पुस्‍तक भी प्रकाशित की थी.इसमे उसने उन सब बातों का वर्णन किया है जिससे उसे मालूम हुआ कि जीसस लद्दाख तथा पूर्व के अन्‍य देशों में भी गए थे.

जीसस के रहने के कारण ही ‘’पहल गाव’’ नाम पड़ा

ऐसा लिखित रिकार्ड मिलता है कि जीसस लद्दाख से चलकर, ऊंची बर्फीला पर्वतीय चोटियों को पार करके काश्‍मीर के पहल गाम नामक स्‍थान पर पहुंच.पहल गाम का अर्थ है ‘’गड़रियों का गांव’’ पहल गाम में वे अपने लोगों के साथ लंबे समय तक रहे.यही पर जीसस को ईज़राइल के खोये हुए कबीले के लोग मिले.ऐसा लिखा गया है कि जीसस के इस गांव में रहने के कारण ही इस का नाम ‘’पहल गाव’’ रखा गया.कश्‍मीरी भाषा में ‘’पहल’’ का अर्थ है गड़रिया और गाम का अर्थ गांव.इसके बाद जब जीसस श्रीनगर जा रहे थे तो उन्‍होंने ‘’ईश-मुकाम’’ नामक स्‍थान पर ठहर कर आराम किया था और उपदेश दिये थे.क्‍योंकि जीसस ने इस जगह पर आराम किया इसलिए उन्‍हीं के नाम पर इस स्‍थान का नाम हो गया ‘’ईश मुकाम’’।

जब जीसस सूली पर चढ़ाये गये तो उसके बाद उनका शरीर जिस गुफा में रखा गया था वहां से वे तीन दिन के बाद गायब हो गये.इसके बाद वे देखे गए—कम से कम आठ लोगों ने उनको नए शरीर में देखा.फिर वे गायब हो गए. ईसाइयत के पास ऐसा कोई रिकार्ड नहीं है कि जिससे मालूम हो कह वे कब मरे. जीसस फिर दोबारा काश्‍मीर आये और वहां पर 112 वर्ष की आयु तक जीवित रहे.और वहां पर अभी भी वह गांव है जहां उनकी मृत्यु हुई.

अरबी भाषा में जीसस को ‘’ईसस’’ कहा गया है.काश्‍मीर में उनको ‘’यूसा-आसफ़’’ कहा जाता था.उनकी कब्र पर भी लिखा गया है कि ‘’यह यूसा-आसफ़ की कब्र है जो दूर देश से यहां आकर रहा’’ और यहाँ भी संकेत मिलता है कि वह 1900साल पहले आया.

’सर्पेंट ऑफ पैराडाइज’’ किताब में भी है जिक्र
‘’सर्पेंट ऑफ पैराडाइज’’ के लेखक ने भी इस कब्र का देखा.वह कहता है कि ‘’जब मैं कब्र के पास पहुंचा तो सूर्यास्‍त हो रहा था. उस समय वहां के लोगों और बच्‍चों के चेहरे बड़े पावन दिखाई दे रहे थे.ऐसा लगता था जैसे वे प्राचीन समय के लोग हों—संभवत: वे ईज़राइल की खोई हुई उस जाति से संबंधित थे जो भारत आ गई थी.

जूते उतार कर जब मैं भीतर गया तो मुझे एक बहुत पुरानी कब्र दिखाई दी. उसकी रक्षा के लिए चारों और फिलीग्री की नक्‍काशी किए हुए पत्‍थर की दीवार खड़ी थी.दूसरी और पत्‍थर में एक पदचिह्न बना हुआ था—कहा जाता है कि वह यूसा-आसफ़ का पदचिह्न है.उसकी दीवार से शारदा लिपि में लिखा गया एक शिलालेख लटक रहा था जिसके नीचे अंग्रेजी अनुवाद में लिखा गया है—‘’यूसा-आसफ़ (खन्‍नयार.श्रीनगर) यह कब्र यहूदी है.भारत में कोई भी कब्र ऐसी नहीं है.उस कब्र की बनावट यहूदी है और कब्र के ऊपर यहूदी भाषा, हिब्रू में लिखा गया है.

योग से संभव है बिना मरे शरीर को मृत जैसी अवस्‍था में पहुंचाना
जीसस पूर्णत: संबुद्ध थे.इस पुनर्जन्‍म की घटना को ईसाई मताग्रही ठीक से समझ नहीं सकते किंतु योग द्वारा यह संभव हो सकता है.योग द्वारा बिना मरे शरीर को मृत अवस्‍था में पहुंचाया जा सकता है.सांस को चलना बंद हो जाता है, ह्रदय की धड़कन और नाड़ी की गति भी बंद की जा सकती है.इस प्रकार की प्रक्रिया के लिए योग की किसी गहन विधि का प्रयोग किया क्‍योंकि अगर वे सचमुच मर जाते तो उनके पुन जीवित होने की कोई संभावना नहीं थी.सूली लगाने वालों ने जब यह समझा कि वे मर गए है तो उन्‍होंने जीसस को उतार कर उनके अनुयायियों का दे दिया.तब एक परंपरागत कर्मकांड के अनुसार शरीर को एक गुफा में तीन दिन के लिए रखा गया.किंतु तीसरे दिन गुफा को खाली पाया गया.जीसस गायब थे.

सूली पर चढ़ाये जाने से जीसस का मन बहुत परिवर्तित हो गया.इसके बाद वे पूर्णत: मौन हो गए.न उन्‍हें पैगंबर बनने में कोई दिलचस्‍पी रही न उपदेशक बनने में.बस वे तो मौन हो गए.इसीलिए इसके बाद उनके बारे में कुछ भी पता नहीं है.तब वे भारत में रहने लगे.भारत में एक परंपरा है कि बाइबल में भी कि यहूदियों का एक कबीला गायब हो गया और उसको खोजने के लिए बहुत लोग भेजे गए थे.वास्‍तव में कश्‍मीरी अपने चेहरे-मोहरे और अपने खून से मूलत: यहूदी ही है.

फ्रांसीसी इतिहासकार बर्नीयर ने भी कश्मीर यात्रा की थी
प्रसिद्ध फ्रांसीसी इतिहासकार, बर्नीयर ने, जो औरंगज़ेब के समय भारत आया था.लिखा है कि ‘’पीर पंजाल पर्वत को पार करने के बाद भारत राज्‍य में प्रवेश करने पर इस सीमा प्रदेश के लोग मुझे यहूदियों जैसे लगे।‘’ अभी भी कश्‍मीर में यात्रा करते समय ऐसा लगता है मानो किसी यहूदी प्रदेश में आ गए हो.इसीलिए ऐसा माना जाता है कि जीसस कश्‍मीर में आए क्‍योंकि यह भारत की यहूदी भूमि थी.

वहां पर यहूदी जाति रहती थी.कश्‍मीर में इस प्रकार की कई कहानियां प्रचलित है.जीसस पहल गाव में बहुत वर्षों तक रहे.उनके कारण ही यह जगह गांव बन गया.प्रतीक रूप में उनको गड़रिया कहा जाता है और पहल गाम में आज भी ऐसी अनेक लोककथाएँ प्रचलित है जिनमें बताया गया है कि 1900 वर्ष पहले ‘’यूसा-आसफ़’’ नामक व्यक्ति यहां आकर बस गया था और इस गांव को उसी ने बसाया था.

जीसस 70 साल तक भारत में थे. वे आने लोगों से बात नहीं करते थे वे अंत तक मौन रहे.

फ्रांसीसी इतिहासकार बर्नीयर ने भी कश्मीर यात्रा की थी
प्रसिद्ध फ्रांसीसी इतिहासकार, बर्नीयर ने, जो औरंगज़ेब के समय भारत आया था.लिखा है कि ‘’पीर पंजाल पर्वत को पार करने के बाद भारत राज्‍य में प्रवेश करने पर इस सीमा प्रदेश के लोग मुझे यहूदियों जैसे लगे।‘’ अभी भी कश्‍मीर में यात्रा करते समय ऐसा लगता है मानो किसी यहूदी प्रदेश में आ गए हो.इसीलिए ऐसा माना जाता है कि जीसस कश्‍मीर में आए क्‍योंकि यह भारत की यहूदी भूमि थी.

वहां पर यहूदी जाति रहती थी.कश्‍मीर में इस प्रकार की कई कहानियां प्रचलित है.जीसस पहल गाव में बहुत वर्षों तक रहे.उनके कारण ही यह जगह गांव बन गया.प्रतीक रूप में उनको गड़रिया कहा जाता है और पहल गाम में आज भी ऐसी अनेक लोककथाएँ प्रचलित है जिनमें बताया गया है कि 1900 वर्ष पहले ‘’यूसा-आसफ़’’ नामक व्यक्ति यहां आकर बस गया था और इस गांव को उसी ने बसाया था.

जीसस 70 साल तक भारत में थे. वे आने लोगों से बात नहीं करते थे वे अंत तक मौन रहे.
 

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