पत्र सूचना कार्यालय, रीजनल आउटरीच ब्यूरो, रांची और फील्ड आउटरीच ब्यूरो, गुमला के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारत खिलौना मेला 2021- अवसर एवं संभावनाएं’ विषय पर आज दिनांक 27 फरवरी 2021, शनिवार को वेबिनार परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस वेबिनार का आयोजन 27 फरवरी से 2 मार्च तक आयोजित होने वाले वर्चुअल 'भारतीय खिलौना मेला 2021' के पहले दिन किया गया है।

वेबिनार परिचर्चा की शुरुआत करते हुए अपर महानिदेशक पीआईबी- आरओबी, रांची श्री अरिमर्दन सिंह ने कहा कि खिलौनों से ही बच्चों का संसार शुरू होता है। एक तरह से कहा जाए तो जीवन की शुरुआत ही खिलौनों से होती है। बच्चों के विकास के विभिन्न स्तरों पर अलग-अलग प्रकार के खिलौने होते थे, दांत निकलने से लेकर चलने के लिए भी खिलौने होते थे। समय में बदलाव के साथ-साथ खिलौनों में भी बदलाव आया है। 

पहले लकड़ी के खिलौनों का ज्यादा इस्तेमाल होता था, आज इनकी जगह प्लास्टिक के खिलौनों ने ले ली है। ‘भारत खिलौना मेला 2021’ जैसे आयोजन से केंद्र सरकार खिलौना निर्माताओं को एक मंच दे रही है जिसके जरिए उनके उत्पादों का देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रचार होगा। 'वोकल फॉर लोकल' मुहिम के तहत खिलौना निर्माण में लोकल सामग्रियों का उपयोग हो रहा है जिससे रोजगार सृजन के मौके मिल रहे हैं और स्थानीय करोबार बढ़ रहा है। माननीय प्रधानमंत्री जी के द्वारा खिलौना उद्योग के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की संकल्पना दूरगामी प्रभाव डालेगा। विभिन्न मीडिया माध्यमों के जरिए भी ऐसे हुनरमंदों को प्रचारित किया जा रहा है जिससे उन्हें प्रोत्साहन मिले।

डा. महेंद्र सिंह, सहायक प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, केंद्रीय विश्विद्यालय झारखंड ने वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि खिलौना निर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन देना केंद्र सरकार का सराहनीय कदम है। खिलौना मेला जैसे आयोजन से इस क्षेत्र को सगंठित बनाया जा सकता है। इस तरह के आयोजन से उद्यमी भी इस क्षेत्र की ओर आकर्षित होंगे। खिलौना उद्योग का अर्थव्यवस्था में भी अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि भारत से कई तरह के खिलौने निर्यात किए जाते हैं। 

इसलिए यह जरूरी है कि खिलौना उद्योग के लिए एक उचित मार्केटिंग प्लेटफार्म हो, जिससे कि हम अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहुंच और पकड़ बना सकें। उन्होंने कहा कि खिलौनों के व्यापक प्रचार के लिए मेलों का आयोजन महत्वपूर्ण हो जाता है। खिलौना निर्माण के क्षेत्र में हमारा प्रयास मेड इन इंडिया, मेड फॉर इंडिया और मेड फॉर द वर्ल्ड का होना चाहिए। यह क्षेत्र समावेशी विकास को भी बढ़ावा देता है क्योंकि खिलौने के निर्माण में इलेक्ट्रिक उपकरण, धातु, प्लास्टिक और अन्य कई सामग्रियों का प्रयोग होता है जिससे इन क्षेत्रों को भी बढ़ावा मिलता है। खिलौना निर्माण में देश की पारंपरिक कलाओं का मिश्रण होता है, इससे सामाजिक व आर्थिक विकास का भी रास्ता बनता है।

सुश्री सभ्यता रानी सिंह, सहायक प्रोफेसर, फाइन आर्ट्स, फैकल्टी ऑफ एजुकेशन, जमशेदपुर महिला कॉलेज ने कहा कि खिलौनों से बच्चों का मानसिक और बौद्धिक विकास तो होता ही है साथ ही उनमें रचनाशक्ति का भी विकास होता है। हम यह भी कह सकते हैं खिलौनों से बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है। पर्यावरण का खयाल रखते हुए अब इको-फ्रैंडली खिलौने तैयार किए जा रहे हैं जिससे बच्चों के साथ-साथ पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। हैंडीक्राफ्ट जैसे- मास्क निर्माण, ग्लास पेंटिंग खिलौने आदि इको-फ्रैंडली कैसे बनाए जाएं, इसके बारे में लगातार बच्चों को शिक्षा दी जा रही है। 

खिलौनों की सुंदरता और रंग-रूप से बच्चे ज्यादा आकर्षित होते हैं और आसानी से समझने लगते हैं इनसे उनका बौद्धिक विकास भी जल्दी होता है। रंगों के माध्यम से उनमें निर्णय लेने की क्षमता का भी विकास होता है। खिलौनों में स्थानीय वेश-भूषा, श्रृंगार का भी महत्व है जिससे बच्चों में सांस्कृतिक समझ का विकास होता है। राजस्थानी खिलौनों की अलग पहचान होती है, साधारण कपड़ों और वेस्ट मैटेरियल से तैयार किए गए इन पुतलियों की पूरे देश में अलग ही पहचान है। वैसे ही मधुबनी के खिलौनों की अलग पहचान है। खिलौने प्राचानी काल से ही हमारे जीवन का हिस्सा रहे हैं। हड़प्पा और मोहनजोदारो की खुदाई में मिले खिलौने इस बात का प्रमाण हैं।
 

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सृजन हैंडीक्राफ्ट्स की श्रीमती शोभा कुमारी ने वेबिनार के दौरान कहा कि उनका समूह 40 से 45 महिलाओं का है और वो पिछले 12 वर्षों से खिलौना निर्माण के क्षेत्र से जुड़ी हैं। वे इस बात को लेकर खासे उत्साहित हैं कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस उद्योग की ओर ध्यान दिया है। वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत अभियान के मद्देनजर सृजन हैंडीक्राफ्ट्स देशी तकनीक और वस्तुओं से खिलौनों का निर्माण कर रहे हैं। खिलौनों में किसी तरह के हानिकारक रंगों का प्रयोग नहीं किया जाता है और काफी कम पूंजी में इसे आसानी से तैयार किया जा सकता है। झारखंड की संस्कृति को भी खिलौनों के माध्यम से प्रदर्शित करते हैं। पारंपरिक परिधानों में पाइका नृत्य करते हुए खिलौने झारखंड के प. सिंहभूम की पारंपरिक कला को प्रदर्शित करते हैं, इस प्रकार से खिलौनों के माध्यम से बच्चे अपनी सांस्कृतिक विरासत से रू-ब-रू होते हैं।

श्री मनोज कुमार (इंडिया टॉय फेयर 2021 के लिए रांची से चयनित प्रतिभागी) ने वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि इंडिया टॉय फेयर में काफी अच्छी प्रतिक्रिया आ रही है। उन्होंने कहा कि सॉफ्ट खिलौने बच्चों के लिए नुकसानदेह नहीं होते हैं, बच्चे इसे अपने दोस्त की तरह देखते हैं। खिलौना उद्योग आज कई लोगों को रोजगार दे रहा है। हमारे देश में काफी प्रतिभाएं हैं, पर स्वरोजगार की कमी है। श्री कुमार ने खुद कई लोगों को प्रशिक्षण देकर इस क्षेत्र से जोड़ा है और युवाओं से अपील की है कि वे स्वरोजगार के जरिए नौकरी मांगने वाला नहीं बल्कि देने वाला बनें। दोपहर के खाली वक्त में कई महिलाएं इस उद्योग से जुड़कर पैसे कमा सकती हैं। उन्होंने आगे कहा कि खिलौना निर्माण के क्षेत्र में एक अच्छी बात यह है कि हमलोग वेस्ट मैटेरियल का भी इस्तेमाल करते हैं जिससे कचरा प्रबंधन भी हो जाता है।

वेबिनार का समन्वय एवं संचालन क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्रीमती महविश रहमान ने किया। क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्री गौरव पुष्कर ने समन्वय में सहयोग दिया। वेबिनार में विशेषज्ञों के अलावा शोधार्थी, छात्र, पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी-कर्मचारियों तथा दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया। गीत एवं नाटक विभाग के अंतर्गत कलाकार एवं सदस्य, आकाशवाणी के पीटीसी, दूरदर्शन के स्ट्रिंगर तथा संपादक और पत्रकार भी शामिल हुए। वेबिनार का यु-ट्यूब पर भी लाइव प्रसारण किया गया।

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