विश्व मधुमक्खी दिवस के अवसर पर पत्र सूचना कार्यालय, प्रादेशिक लोक संपर्क ब्यूरो, रांची एवं बिरसा कृषि विश्वविद्यालय , रांची के संयुक्त तत्वावधान में आज आयोजित वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए पत्र सूचना कार्यालय ,रांची एवं रीजनल आउटरीच ब्यूरो, रांची के अपर महानिदेशक श्री अरिमर्दन सिंह जी ने कहा की कंदमूल से लेकर फल-फूल तक के उत्पादन में मधुमक्खियों द्वारा की जाने वाली परागण क्रिया समस्त मानव जाति के लिए एक अद्भुत वरदान है। प्रकृति में लगभग 80 फ़ीसदी से ज्यादा पॉलिनेशन यानी परागण मधुमक्खियों द्वारा ही किया जाता है।

श्री अरिमर्दन सिंह ने आगे बताया कि यूं तो हम लोग मधुमक्खी के छत्ते से प्राप्त मधु का प्रयोग करते हैं और इसके फायदे की जानकारी रखते हैं लेकिन मधु के अलावा मधुमक्खियों से प्राप्त होने वाले मधुमक्खी विष , पोलेन, प्रोपोलिस और मधुमक्खी रॉयल जेली आदि से परिचित नहीं हैं। जबकि यह सब वह उत्पाद हैं जिनका प्रयोग विभिन्न प्रकार की औषधियों और चेहरे तथा बदन के साज-सज्जा में प्रयोग होने वाले क्रीम एवं जेल आदि में किया जाता है। बाजार में मधुमक्खी के छत्ते से हासिल किए जाने वाले लाभकारी उत्पादों की बहुत मांग है और इसकी ऊंची कीमत मिलती है।

श्री अरिमर्दन सिंह ने कहा कि मधुमक्खी पालक/किसान मधु तथा इससे जुड़े हुए उत्पादों को बाजार में बेचकर बहुत उम्दा लाभ कमा कर आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर सकते हैं।

श्री अरिमर्दन सिंह ने आगे कहा कि भारत में मधु और मधु से जुड़े उत्पादों की उपयोगिता के बारे में जानकारी फैलाने की जरूरत है और इसे दुनिया के अन्य देशों की तरह खाद्य सामग्री के तौर पर प्रचलित करने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि शुद्ध मधु को लेकर लोगों के बीच कुछ भ्रांतियां भी हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है।

17 डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे तापमान होने पर मधु का जम जाना या ग्रेनुलुएशन की एक सामान्य क्रिया है। मधु के जम जाने से यह अर्थ निकालना सही नहीं है कि इसमें चीनी या किसी बाहरी तत्व की मिलावट है।

वेबिनार में वक्ताओं के द्वारा उठाए गए कुछ प्रश्नों के उत्तर में अपर महानिदेशक ने कहा कि वे राज्य सरकार एवं भारत सरकार को पत्र लिखकर मधुमक्खी पालकों के लिए पहचान पत्र उनकी अन्य समस्याओं के निराकरण के लिए प्रयास करेंगे।


वेबिनार में बिरसा कृषि विवि के एंटोमोलॉजी विषय के सीनियर वैज्ञानिक डॉ एम के चक्रवर्ती, आयुष के पूर्व निदेशक डॉ अब्दुल नुमान अहमद, मधुमक्खी प्रेमी अरिमर्दन सिंह, विशेषज्ञ मधुमक्खी पालक अशोक कुमार व एंटोमोलॉजी के जूनियर वैज्ञानिक बिनय कुमार ने अपने विचार रखे। वक्ताओं ने कहा कि पर परागण क्रिया द्वारा 80 से 85% तक खाद्यान्न एवं फल सब्जी आदि के उत्पादन में मधुमक्खियों का बड़ा योगदान है। मधुमक्खियों का शुमार विकसित समाजिक जीवों में होता है। जैसे मानव एक सामाजिक प्राणी है उसी प्रकार मधुमक्खी भी विकसित समाजिक जीव है , जिनकी कॉलोनी में एक रानी तथा कुछ नर और बाकी सब वर्कर होते हैं। मधुमक्खी की कॉलोनी में सभी का अलग-अलग कार्य होता है और मधुमक्खी उसी व्यवस्था में कार्य कर रही है।

मधु रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है तथा मधुमक्खियों से प्राप्त विष का होम्योपैथिक दवाई में उपयोग किया जाता है। मधु गर्म तासीर का होता है अतः इसका उपयोग कम करना चाहिए। मधु उत्पादन रोजगार व जीविकोपार्जन का बड़ा साधन बन सकता है ।
जैसे किसान के फसल का बीमा होता है उसी तरह से मधु उत्पादन करने वाले किसानों की मधु पेटिकाओं का भी बीमा होना चाहिए। मधु उत्पादक का एक पहचान पत्र सरकार के द्वारा निर्गत किया जाना चाहिए जिससे उसे मधु पेट गांव के स्थानांतरण के समय रात में अकारण पुलिस द्वारा ना रोका जाए क्योंकि इससे बहुत सी मधुमक्खियां के मरने के साथ ही मधु पालक को कभी-कभी बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ता है। झारखंड में देश का सबसे सर्वश्रेष्ठ मधु करंज से मिलता है जो सबसे ज्यादा कीमत में बिकता है। साहिबगंज जिले में पहाड़ी आदिवासी समुदाय के साथ अन्य लोग भी ग्रामीण क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से मधुमक्खी को पालन कर सकते हैं।

वेबिनार में वक्ताओं द्वारा यह भी सुझाव रखा गया कि मधुमक्खी रोजगार में लगे किसान के लिए यातायात व्यवस्था में सुविधा दी जाए। एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने में उनको सुविधा होनी चाहिए ताकि मधुमक्खी किसानों को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं झेलनी पड़े और सुगमता से अपने रोजगार व जीविकोपार्जन के इस साधन से वे अपने परिवार का पालन पोषण कर परिवार , समाज और राष्ट्र को आर्थिक मदद कर सकें।

प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के माध्यम से 10 से 12 लाख रूपया तक रोजगार के लिए ऑनलाइन आवेदन कर 45 दिन में राशि प्राप्त हो जाता है। भूवैज्ञानिक सह पर्यावरणविद डॉ रणजीत कुमार सिंह ने बिरसा मुंडा कृषि विश्वविद्यालय व पत्र सूचना कार्यालय से आग्रह किया है कि सिदो-कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका एवं साहिबगंज महाविद्यालय के साथ साझा शोध कार्य व रोजगार के लिए प्रशिक्षण में छात्राओं एवं युवाओं को जोड़ा जाए। डॉ रणजीत कुमार सिंह सिदो-कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका के स्तर पर बने साझा शोध सेल के सदस्य हैं।

वेबिनार का समन्वय एवं संचालन क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्री शाहिद रहमान ने किया। वेबिनार में विशेषज्ञों के अलावा शोधार्थी, छात्र, पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी-कर्मचारियों तथा दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया। गीत एवं नाटक विभाग के अंतर्गत कलाकार एवं सदस्य, आकाशवाणी के पीटीसी, दूरदर्शन के स्ट्रिंगर तथा संपादक और पत्रकार भी शामिल हुए। वेबिनार का युट्यूब पर भी लाइव प्रसारण किया गया तथा मधुमक्खी पालन पर क्विज प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया।
 

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