This is the first time a tableau on Dokra art of Jharkhand will be seen at the Republic Day parade on Rajpath, New Delhi The tableau, which carries the Dokra art passed on from generation to generation since the days of the Indus Valley civilisation(2500 B.C)is going to be shown to the nation,Jharkhand’s secretary MR Meena told the Governor Syed Ahmad today.

A press release issued by the Raj Bhawan said as follows:

 à¤¸à¤šà¤¿à¤µ,सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग श्री एम. आर. मीणा ने आज राजभवन जाकर महामहिम राज्यपाल झारखण्ड,डा. सैयद अहमद को गणतंत्र दिवस-2013 के अवसर पर राजपथ,नर्इ दिल्ली में प्रदर्षित होने वाली झारखण्ड राज्य की झांकी की अभिकल्पना एवं विषयवस्तु से अवगत कराया। उन्होंनें महामहिम को ष्डोकरा कलाष्विषयक प्रदर्षित होने वाली राज्य की झांकी के संबंध में अवगत कराते हुए कहा कि यह झारखण्ड की धरोहर एवं परम्परागत कला का एक जीवन्त उदाहरण है। यह राज्य की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं प्रा—तिक जीवन शैली के पहलुओं को भी प्रतिबिमिबत करती है।

झारखण्ड राज्य में मलार जाति के द्वारा बहुत ही सुन्दर खूबसूरत और मनोहारी आ—ति बनाये जाते हंै जिसे लोग डोकरा कला के नाम से जानते हैं । डोकरा शब्द (DHOKRA) धोकरा का ही अपभं्रष है।

उन्होंने बताया कि इस कला की शुरूआत हड़प्पा और मोहनजोदड़ो  2500 B.C  के लगभग काममलार  ( KAMMALAR) à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ द्वारा की गर्इ थी।सामान्यतया डोकरा षिल्प ताम्बा और कांँसा के मिश्रित धातु से बनाया जाता है। मलार जाति के डोकरा षिल्पी झारखण्ड के मूलवासी हंै, जो विशुनपुर, बनारी, डुम्बरपाट, पूर्वी सिंहभूम, पŒ सिंहभूम , खूँटी, हजारीबाग, पŒ बोकारो आदि जगहों में विशेष रूप से निवास करते हंैै। जनवरी के प्रथम सप्ताह से ही राँची एवं खूँटी जिले के डोकरा षिल्पी विभाग के विषेष कार्यपदाधिकारी श्री गन्दुरा मुण्डा के नेतृत्व में नर्इ दिल्ली सिथत राष्ट्रीय रंगषाला में कैप कर झांकी को आकर्षक रूप देने मे जुटे हैं।झांकी प्रदर्षन के लिए आवष्यक समन्वयन हेतु निदेषक सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग श्री आलोक कुमार भी कल से दिल्ली में कैप करेंगें।

उन्होंने कहा कि मलार षिल्पी ताम्बा एवं कांसा की कला—ति में चेतना एवं भावनात्मक कल्पना को बहुत ही सरलता एवं परम्परागत विशेष तरीके से ढाल देते हैं। इसके लिए ये मिटटी की खोखली आ—ति, सजावट के कार्य के लिए बाँस और मोमबती के तार के साथ मिश्रित धातु का प्रयोग करते हैं। इनके द्वारा बनायी गर्इ कला—ति को उपहार, घर की आंतरिक सजावट, तथा मोमेन्टो (प्रतीक) के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। यह कला मलार जाति के लोगो का जीवीकोपार्जन का जरिया है। इनकी कला की सुरभि क्षेत्रीय स्तर से निकल कर देश के विभिन्न क्षेत्रों एवं विदेशों में भी फैलने लगी है और इसका ग्लोबल मार्केट भी तैयार होने लगा है।उन्होंने बताया कि विभाग के द्वारा आगामी गणतंत्र दिवस के अवसर पर राँची के मोरहाबादी मैदान में अमर नायक भगवान बिरसा मुण्डा पर आधारित झांकी एवं उप-राजधानी दुमका के पुलिस लाइन्स ग्राउन्ड में अमर ष्षहीद सिद्धु-कान्हु पर आधारित झांकी प्रदर्षित की जायेगी।इस अवसर पर निदेषक जनसम्पर्क श्री आलोक कुमार भी मौजूद थे।

What is Dokra?

Dokra is not new to the people of Jharkhand, who are well aware that the Malar clans through their artistic passion carve out enchanting designs out of the brass. The metal creation that has come to be known as Dokra, however, is a corruption of the word original Dhokra.

The term Dhokra in turn refers to the Dhokra clan of people, who through sustaining endeavour of years have perfected the art of this artistic creation. The first reference of this art form could be traced to the 2500 BC in Harappa and Mohanjodaro by the people belonging to the Kammalar clans.

The artistic creations that used to be carved out on the mixed metal of copper and kansa (these days the same is carved out in brass metal) has appropriately given the state of Jharkhand a distinct identity across the country as the Dokra artists after having traveled from the length and breadth of this country have come to stay in the state.

The beautiful carvings on the brass in fact represent socio-economic, religious and proclivity to nature manifest in the life and culture of the local people. The Malars are the original inhabitants of Jharkhand, who have come to stay at Vishunpur, East Singhbhum, Banari, Dumbarpat, West Singhbhum, Khunti, Hazaribagh, Bokaro.

The art form comes naturally to the members of the Malar clan, who simply embed their socio-cultural consciousness and emotions on the metals. In fact, the Dokra artists first take specifically kneaded soil and then make hollow designs and then they pour in the molten brass in the hollow of the dry soil. Later when the brass stuck to the temporary designs, the soil is extracted and thus the final carvings are effected.

The artistic creations brought out by the Dokra artists are used in the house make-over and general beautification purpose. The people also exchange the Dokra art forms as gifts. The brass carvings are also used as momentos. Of late, the creations of Malar artists have crossed the national boundaries. There has been a global demand for their creations.

Tableau:
1. At the front part of the trailer, an elephant based on Dokra art has been kept; a Dokra palanquin occupies the middle part while the statues of gods and goddesses along with the map of Jharkhand have been displayed.

-----------------------------Advertisement------------------------------------ 

-----------------------------Advertisement------------------------------------ 

must read