पद्मश्री मधु मंसूरी हंसमुख झारखंड की वो शख्सियत हैं जिन्होंने लोक गीतों के माध्यम से समाज के नव निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

 'गांव छोड़ब नाहीं, जंगल छोड़ब नाहीं..जैसे गीतों के रचयिता पद्मश्री मधु मंसूरी हंसमुख रांची के रातू प्रखंड अंतर्गत सिमलिया गांव के रहने वाले हैं। वे जल, जंगल और जमीन से लेकर सामाजिक सरोकार के बड़े पैरोकार हैं। मेघनाद महतो के साथ उनके द्वारा तैयार गीत 'गांव छोड़ब नाहीं, जंगल छोड़ब नाहीं. उनकी शख्सियत को बताने के लिए काफी है ।


*समाज को नयी दिशा दिखाते पद्मश्री मधु मंसूरी हंसमुख*

मधु मंसूरी हंसमुख ने 8 साल की उम्र में पहली बार सार्वजनिक स्थल पर अपने गीत की प्रस्तुति दी थी। उन्हें गीत की प्रेरणा अपने पिता से मिली थी जो खुद भी अच्छे लोकगायक थे। उनके गांव में त्योहार के समय गीतों की महफिल सजती थी और सभी समुदाय के लोग मिलकर गाते-बजाते थे। मधु मंसूरी को भी लोक गायन का आकर्षण धीरे धीरे खींचता चला गया। मधु मंसूरी ने वैसे तो बकायदा संगीत की शिक्षा नहीं ली है लेकिन उनकी गायन शैली दिलों को छु जाती है। उनके गीतों में शब्द चयन कुछ ऐसा होता है जो जनसामान्य में ऊर्जा भरने के साथ ही समाज को भी नयी दिशा दिखाता है। नागपुर कर कोरा, आगे की बात हो या फिर 'गांव छोड़ब नाहीं, जंगल छोड़ब नाहीं..जैसे गीतों की बात हो, इन गीतों की कुछ खास बात है जो मधु मंसूरी को खास बनाते हैं।


*नागपुर कर कोरा गीत दिल के सबसे करीब*

मधु मंसूरी सांस्कृतिक अग्रदूत के रूप में पिछले कई दशकों से झारखंड की साझा संस्कृति को सहेजते हुए आगे बढ़ा रहे हैं। राजनीतिक जागरूकता की बात हो या फिर सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ शंखनाद हो, मधु मंसूरी हर जगह अपने गीतों से लोगों को जगाते नज़र आते हैं। उन्होने अबतक लगभग 240 से 245 गीत लिखे हैं जो सभी बेहद खास हैं। नागपुर कर कोरा गीत को तो वे सात हज़ार बार गा चुके हैं जो उनके दिल के सबसे करीब .है।


*पीपुल्स अवार्ड* : *मधु मंसूरी को सम्मान मिलना केंद्र सरकार की संवेदनशीलता का परिचायक*

छह से सात दशकों के सफर में मधु मंसूरी ने नागपुरी भाषा में गीत लिखकर और उन्हें स्वर देकर जिस जुनून के साथ सामाज का मार्गदर्शन किया उसे अब तक वो मान्यता और पहचान नहीं मिली थी जिसके मधु मंसूरी हकदार थे। समय के पहिये पर सवार किस्मत हमेशा इंसान को नए मुकाम तक पहुंचा देती है। ऐसा ही कुछ मधु मंसूरी के साथ हुआ है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने उनकी उपलब्धियों को मान सम्मान देते हुए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा है। मधु मंसूरी को सम्मान मिलना केंद्र सरकार की उस संवेदनशीलता का परिचायक है जो पद्म पुरस्कारों को सही अर्थों में नागरिक सम्मान ,पीपुल्स अवार्ड बनाता है। अब देश में वैसे लोगों को भी सम्मान मिल रहा है जो पैरवी और चापलूसी करने की बजाय अपने मिशन में लगे रहते हों तथा जिनके लिए भगवान कृष्ण द्वारा गीता में दिया संदेश कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि।। अर्थात-
इंसान को केवल कर्म का ही अधिकार है, उसके फल के बारे में चिंता करने का नहीं जैसे श्लोक मूल मंत्र हैं .


*आवाज़ में अभी भी वही खनक*

मधु मंसूरी हंसमुख लगभग 73 वर्ष के हो चुके हैं और अभी भी उसी ऊर्जा से काम करते हैं जो उनमें पहले दिखा करती थी। उनकी आवाज़ में अभी भी वही खनक है जो सोतों को जागृत कर दे। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों पद्मश्री सम्मान से नवाज़े जाने पर जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा समेत अनेक राजनेताओं ने उन्हें बधाई दी है। श्री मुंडा ने कहा कि झारखण्ड की लोक संस्कृति को राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने वाले श्री मधु मंसूरी हंसमुख जी को "पद्मश्री" का सम्मान मिलने पर बधाई एवं शुभकामनाएं। मधु मंसूरी हंसमुख के चाहने वाले और उनके परिजनों ने भी मधु मंसूरी हंसमुख को पद्मश्री से अलंकृत किए जाने पर केंद्र सरकार का आभार जताया है। उन्होने पूर्ववर्ती सरकारों की बेरुखी की चर्चा करते हुए इसे देर आए दुरुस्त आए की संज्ञा देते हुए पद्म पुरस्कारों को उसके सही हकदारों तक पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साधुवाद दिया। मधु मंसूरी हंसमुख ने भी इसे अपनी तपस्या का फल बताया है।


*क्षेत्रीय भाषाओं के विकास पर बल*

झारखंड की 9 क्षेत्रीय भाषाओं के विकास पर अब पद्मश्री मधु मंसूरी हंसमुख का विशेष ज़ोर है। उनका कहना है कि वे सांस्कृतिक फ्रंट से आते हैं इसलिए वे चाहते हैं कि नागपुरी , संथाली , खोरठा , हो , कुड़ुख और पंच परगनिया समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को उचित सम्मान मिले और उनके विकास तथा संरक्षण संवर्धन के वास्ते सरकारें पहल करे। इन क्षेत्रीय भाषाओं को 9 तरह के फूल कि संज्ञा देते हुए उन्होने कहा कि ये सभी भाषाएँ अपने आप में विशेष और अनूठी हैं।

(सैयद शाकिर गिलानी, एक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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