*File photo by Ratan Lal

झारखंड में आज रविवार को आदिवासी भाइयों और बहनों द्वारा साल में एक बार मनाया जाने वाला पर्व सरहुल पूजा शुरू हो चुका है ।कल इसकी समाप्ति होगी।

आज से सरना पूजा धर्मावलंबियों ने उपवास कर पूजे की शुरुआत की।रीति के अनुसार आज सुबह में केकड़ा व मछली पकड़ने का विधान हुआ। खूब केकड़ा पकड़ते लोग राँची के विभिन्न जगहों पर दिखाई दिए।

आज रात में पाहन सरना स्थलों पर जल रखाई पूजा करने में लगे है।पाहन( priest) द्वारा कल सोमवार को पानी के घड़े को देखकर वर्षा का अनुमान लगाया जाएगा। दोपहर बाद शोभा यात्रा निकाली जाएगी। 

प्रश्न है की प्राकृति के इस सरहुल पर्व में केकड़े का क्या महत्व है?और इसका क्या उपयोग है?

दरअसल सुबह के वक्त में हाई केकड़ा पकड़ा जाता है और उसे पूजा घर में अरवा धागा से बांध कर टांग दिया जाता है। फिर जब धान की बुआई की जाती है तो इसका चूर्ण बनाकर गोबर मिला दिया जाता है। उसके बाद बुआई होती है। ऐसी मान्यता है कि जिस तरह केकड़े के असंख्य बच्चे होते हैं उसी तरह धान की बालियां भी आने वाले बरसात में असंख्य होंगी।

सरहुल दरअसल दो शब्दों से मिलकर बना है। यहाँ ‘सर’का मतलब होता है ‘सरई’ या ‘सखुआ’( साल) फूल और ‘हुल’ का मतलब क्रांति होता है ।

इसलिए सखुआ के फूलों की क्रांति को सरहुल के नाम से जाना जाता है।ये त्योहार खास तौर से धरती माता को समर्पित किया होता है।यह पर्व प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष के तृतीय से शुरू होकर चैत्र पूर्णिमा के दिन संपन्न होता है और इसी दिन से आदिवासियों का नव वर्ष शुरू हो जाता है।

झारखंड की राजधानी राँची में आदिवासी बहुल हातमा मौजा में मुख्य पाहन, जगलाल पाहन ने सभी सरना धर्मावलंबियों से उपवास और पूजा-पाठ करने की अपील की है।

उन्होंने कहा है कि रात आठ बजे तक जल रखाई पूजा की शुरू कर देना है।वहीं कल 10 बजे तक घरों में पूजा संपन्न करने की अपील की है।जिसके बाद सरना स्थल पर पूजा होगी।जो कि 11 बजे तक चलेगा। प्रसाद ग्रहण करने के बाद सरहुल की शोभा यात्रा निकाली जाएगी।

-----------------------------Advertisement------------------------------------Abua Awas Yojna 

must read