रेड सी इंटरनेशनल स्कूल आजाद बस्ती के छात्रों ने आज बरियातू स्थित वृद्धाश्रम (ओल्ड एज होम) का दौरा किया। वैसे तो ओल्ड एज होम का ज़िक्र आते ही नई पीढ़ी के प्रति लोगों का मन घृणा से भर जाता है। लोग उन्हें कोसने लगते हैं कि 'ईश्वर ऐसा बेटा किसी को ना दे! इससे तो अच्छा है बेटा हो ही ना!' और यही सोच बेटा चाहने के पीछे की मानसिकता "बुढ़ापे का सहारा" को दर्शाता है। 

आज के इस विजिट का मकसद बच्चों को यह बताना था की हमारे देश मे भी बाहर के मुल्कों की तरह अब ओल्ड ऐज होम जैसा कांसेप्ट बढ़ने लगा है। लेकिन सवाल यह है क्या बेटे या बेटी ही अपने बूढ़े मां बाप को ओल्ड ऐज होम भेजते है या वे खुद नई पुढी के साथ एडजेस्ट नहीं कर पाते है?

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रेड सी स्कूल के निदेशक अज़ीज़ साहब ने बताया कि दुनिया के किसी भी सभ्य समाज मे वृद्धाश्रम जैसे व्यवस्था की कल्पना नहीं की जा सकती है। यह तो एक संकोचित मानसिकता को दर्शाता है। उन्हों ने कहा कि आज कल पश्चिमी मुल्कों में वृद्धा आश्रम जैसे व्यवस्थओं का चलन बहुत है। जहाँ लोग अपने बूढ़े मां - बाप को समय के कमी और और जिंदगी की व्यस्तता के कारण ओल्ड ऐज होम में रखने को मजबूर हैं। 

स्कूल की प्राचार्या श्रीमती सोनी लकड़ा ने कहा कि  कभी कभी किसी बुद्ध व्यक्तियों के कोई परिजन या रिश्तेदार नहीं होते हैं तो उस हालात में वृद्धाश्रमों की काफी आवयश्कता पड़ती है जहाँ उन्हें अपने बची हुई ज़िन्दगी को अच्छे से गुजरने का पूरा हक मिले।

 

स्कूल के छात्रों ने वृद्धाश्रम में रह रहे लोगों से मिलकर काफी खुश हुए उन्हें ने इन्हें अपने दादा, दादी, नाना और नही की तरह प्यार और सम्मान दिया। कक्षा 6 के छात्र हुजैफा हक़ जिसकी दादी अभी इस दुनिया मे नहीं उस ने कहा कि मुझे यहाँ आकर अपनी दादी की बहुत याद आराही है। कुछ देर के लिए तो उसने इनमे अपनी दादी की मौजूदगी का एह्साह रहा। इस मे कई छात्र ऐसे थे जिनकी दादा, दादी, नाना, नानी की मौत हाल में फैले कोरोना संक्रमण से उन्ही के आंखों के सामने हुई थी। उन्हें देखकर बच्चे कुछ क्षण के लिए के लिए भावुक हो गए थे। बच्चों ने वृद्ध आश्रम में रह रहे लोगों के साथ काफी समय बिताया उनके साथ अच्छी अच्छी  बातें को शेयर किया। उनके साथ उनके पसंद का चीज़ खा और उन्हें खिलाकर कर काफी खुश हुए। छात्रों ने दोबारा आने की वादा कर वहां से रवाना हुए।

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