पूर्व सांसद महेश पोद्दार ने आज अपनी चीठीं मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन को लिख कर अनुरोध किया है की पारसनाथ श्री सम्मेद शिखर को 'धार्मिक तीर्थस्थल' घोषित करें।
 
उनकी चीठी का लेख ये है।
 

पत्रांक :MISC/65/22-23                                              दिनांक :  03.01.2023

 

 

श्री हेमंत सोरेन

माननीय मुख्यमंत्री

झारखंड सरकार

 

विषय : पारसनाथ श्री सम्मेद शिखर को 'धार्मिक तीर्थस्थल' घोषित करने का अनुरोध

 

प्रिय हेमंत जी

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!

 

आज मैं आपको राज्य ही नहीं बल्कि पूरे देश और विश्व के एक समुदाय विशेष की पीड़ा से अवगत कराना चाहता हूँ। पहली जनवरी को पूरी दुनिया के साथ भारत के लोग भी पिकनिक की मस्ती में डूबे थे। कड़ाके की ठंड के बावजूद खुशी का माहौल था।लेकिन भारत का एक बेहद छोटा अल्पसंख्यक जैन समुदाय अपनी धार्मिक पहचान के लिए सड़कों पर उतरा था। पता नहीं, कितने लोगों ने उनकी पीड़ा महसूस की। लेकिन मैं उनकी पीड़ा आप तक पहुंचाना आवश्यक समझता हूँ।

सर्व धर्म समभाव की परंपरा वाले देश के इस छोटे अल्पसंख्यक जैन समुदाय का विशेष महत्व है। उस देश में, जो सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास की नीति पर चल रहा है।

जैन धर्म भारत की एक अद्भुत धार्मिक सांस्कृतिक विरासत है। इसके मूल में अहिंसा और त्याग है। हजारों वर्षों बाद भी जैन धर्म प्रासंगिक है। इसे करोड़ों लोगों ने अपनाया है। इस धर्म का विस्तार कभी जोर जबरदस्ती नहीं किया गया। किसी शासन का भय नहीं था।कोई लालच भी नहीं दिया गया। इस वर्ग को अल्पसंख्यक दर्जा मिला है। लेकिन यह भी तथ्य है कि हिंदू धर्म या अन्य किसी धर्म से  इनका कोई विरोध नहीं, बल्कि रोटी बेटी का रिश्ता है।

यह हमारा सामूहिक दायित्व है कि जैन समुदाय को समुचित संरक्षण और प्रोत्साहन दिया जाए। हम झारखंड वासियों को इस पर खास गर्व होना चाहिए क्योंकि इनका सबसे बड़ा और आराध्य स्थल गिरिडीह के पारसनाथ में सम्मेत  शिखर पर है।कल्पना करें कि हजारों वर्ष पूर्व कैसे जैन मुनियों ने इस दुर्गम पहाड़ी पर अपना बसेरा बनाया होगा। ज्ञान और मोक्ष प्राप्ति की ओर यहां से सारी दुनिया को एक अद्भुत अहिंसा आधारित धर्म दिया गया। आज इतने विकास के बावजूद इन्हें सड़कों पर उतरना पड़ रहा है।

झारखंड सरकार ने पारसनाथ को  'प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल' घोषित किया है। अंग्रेजी में इसे जैन समाज का 'रिलिजियस पिलग्रीमेज' यानी धार्मिक तीर्थयात्रा स्थल कहा गया है। सरकार इस क्षेत्र का पर्यटन विकास करना चाहती है। यह एक सकारात्मक बात है।लेकिन जैन समुदाय को लगता है कि पर्यटन क्षेत्र होने पर इसकी धार्मिक पवित्रता पर आंच आएगी। यहां मांसाहार और मदिरापान को बढ़ावा मिल सकता है। अधार्मिक गतिविधि बढ़ सकती है।इसलिए जैन समुदाय इसे 'पर्यटन स्थल' नहीं बल्कि सिर्फ 'धार्मिक स्थल' घोषित करने की मांग कर रहा है।

यदि उस क्षेत्र के विकास का अर्थ गेस्ट हाउस बनाना, कॉलोनी या सड़क बनाना इत्यादि है, तो इसका विरोध कोई नहीं करेगा।यदि बिजली, पानी, स्कूल, अस्पताल वग़ैरह के लिए फंड चाहिए, तो सांसद और विधायक फंड, डीएमएफटी या फिर सामान्य योजना फंड के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। कोई भी जनहित की ऐसी योजना नहीं जिसके लिए धन हेतु इसे पर्यटन स्थल घोषित करना पड़े।इस पर पुनर्विचार होना चाहिए। सरकार की इच्छा हो तो अधिसूचना में संशोधन करना कोई मुश्किल काम नहीं है। ऐसा कई मामलों में हो चुका है।उचित होगा कि आशंकाओं का समाधान करके अल्पसंख्यक जैन समाज को अनावश्यक पीड़ा और चिंता से मुक्ति दिलाई जाए।

ऐसा संशोधन करना कोई मुश्किल काम नहीं है। राज्य सरकार ने पारसनाथ को 'प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल' घोषित कर रखा है। जैन समाज की आशंका 'पर्यटन' शब्द को लेकर है।

बेहतर होगा कि राज्य सरकार इसमें से 'पर्यटन' शब्द हटाकर इसे 'धार्मिक तीर्थस्थल' घोषित करते हुए यह स्पष्ट कर दे कि उक्त क्षेत्र में मांस-मदिरा तथा अपवित्र गतिविधियों पर रोक रहेगी। ऐसा करके वर्तमान गतिरोध को खत्म किया जा सकता है।

यह बात भी गौरतलब है कि पारसनाथ की स्थिति राज्य के अन्य धार्मिक स्थलों से भिन्न है। इसका विश्व भर के जैन समुदाय के लिए विशेष स्थान है।यह जैन धर्म का उद्गम स्थल है जहां 24 में से 20 तीर्थंकरों ने ज्ञान एवं मोक्ष प्राप्त किया।इसलिए राज्य के अन्य धार्मिक केंद्र के समान रूप से इसकी स्थिति में परिवर्तन की |

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