न्यायिक हस्तक्षेप की मांग के साथ ज़मीनी स्तर पर व्यापक आंदोलन की भूमिका तैयार कर रही है कांग्रेस

संतोष दीपक

1 जून को भारतीय लोकसभा के सातवें और अंतिम चरण के मतदान के साथ ही शाम साढ़े छह बजे से विविध टीवी चैनल्स पर शुरू एग्जिट पोल के साथ ही संपूर्ण चुनावी प्रक्रिया में एक नये विवाद की एंट्री होने जा रही है जिसकी भूमिका वास्तव में बहुत पहले से तैयार की जा रही थी.

16 मार्च 2024 को भारतीय लोकसभा के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से बमुश्किल दो-तीन दिन पहले दो चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की गयी थी. इसपर सवाल खड़े किये गये थे. इवीएम में डाले गये वोट का भीभीपेट से मिलान की मांग को लेकर अनेक संगठन सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा चुके हैं जहाँ से उन्हें असफलता हाथ लगी और सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों ने बैलट पेपर के साथ मतदान करवाने की मांगों को भी ख़ारिज कर दिया. सर्वोच्च न्यायालय ने इवीएम से किये जा रहे मतदान को पूरी तरीके से न्यायोचित और भारतीय परिस्थितियों एवं अपेक्षाओं के पूरी तरीके से अनुकूल बताया था.

लेकिन 1 जून 2024 को सातवें एवं अंतिम चरण के लोकसभा चुनाव के पश्चात निर्वाचन आयोग की बंदिशों के पश्चात एवं दिये गये दिशानिर्देशों के अनुरूप शाम साढ़े छह बजे के बाद जैसे ही एग्जिट पोल में संग्रहित आंकड़ों का विभिन्न समाचार चैनलों एवं अखबारों में प्रसारण व प्रकाशन शुरू हुआ वैसे ही प्याले में तूफान उठ गया. लेकिन इस तूफान को कब प्याले से निकालकर पूरे देश में फैलाने की कोशिश होगी.. यह कहना मुश्किल है. इसके तहत आंदोलन के साथ ही एक ही बात निश्चित है. जमीनी स्तर पर उस संपूर्ण चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़े किये जायें जिसे 81 दिनों की मशक्कत के बाद पूरा किया जा चुका है.

महत्वपूर्ण बात यह भी है कि 1 जून को ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने आवास पर इंडी गठबंधन के सभी दलों एवं महत्वपूर्ण नेताओं की एक बैठक बुलायी थी जिसमें मुख्य तौर पर ममता बनर्जी, शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला, उद्धव ठाकरे आदि को छोड़कर अनेक नेताओं ने भाग लिया. इस महत्वपूर्ण बैठक के बाद के बाद संवाददाताओं से बातचीत करते हुए श्री खड़गे ने बताया कि इंडी गठबंधन को इस चुनाव में 295 सीट मिलने वाली है. सभी ने एक सुर से यही आँकड़ा दोहराया. यहाँ तक कि राहुल गाँधी ने इसे सिद्धू मूसेवाला के आईपीसी 295 से जोड़ दिया.

लेकिन इसके कुछ मिनट बाद चैनल्स पर जिस एग्जिट पोल का प्रकाशन व प्रसारण शुरू हुआ तो वहाँ कहानी बिल्कुल दूसरी थी. सभी चैनल्स पर हुए एग्जिट पोल में भारतीय जनता पार्टी और उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सभी सहयोगी दलों को कुल मिलाकर बहुमत 272 से कहीं बहुत ज़्यादा मिल रहा है. प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी की वापसी हो रही है. 8 चैनल्स को मिलाकर पोल ऑफ़ द पोल्स के अनुसार भाजपा को 330 सीट के साथ एनडीए को 372 सीट मिल रहा है. मुख्य चैनल्स में रिपब्लिक भारत एनडीए को 353-368 सीट, आजतक पर एनडीए को 361-401 सीट, इंडिया टीवी पर 361-401, टाइम्स नाउ नवभारत पर 366 और एबीपी न्यूज़ पर 353-383 सीट मिल सकती है. जबकि इन्हीं चैनल्स द्वारा इंडी अलायंस को 118-133, 131-166, 131-166, 146 और 152-182 सीट मिल सकती है.

अर्थात एग्जिट पोल के अनुसार मोदी द्वारा भारतीय जनता पार्टी का 370 सीट प्राप्त करने और एनडीए का अबकी बार 400 पार का नारा जमीनी स्तर पर यदि पूरी तरीके से सही नहीं भी है तो यह बहुत हद तक अपने-आप को कसौटी पर साबित भी कर रहा है. इसके बाद एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इस प्रकार के एग्जिट पोल और ऐसे परिणाम की आशंका या अपेक्षा भारत के सबसे पुराने और दूसरे सबसे बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस को भी थी. तभी तो केवल एक दिन पहले कांग्रेस ने एग्जिट पोल के दौरान सभी टेलीविजन चैनल्स पर आयोजित की जानेवाली चर्चा के बहिष्कार का निर्णय लिया था. 

लेकिन 1 जून को पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस ने अपने द्वारा बहिष्कार किये जाने का निर्णय वापस ले लिया और 1 जून को अनेक चैनल्स पर कांग्रेस के प्रवक्ता नज़र आये. कांग्रेस के साथ ही इंडी गठबंधन के प्रवक्ता और नेता भी कहीं बचाव में तो कहीं आक्रामक होते हुए नजर आये और सभी ने एक प्रकार से एग्जिट पोल की संपूर्ण प्रक्रिया की विश्वासनीयता को नकार दिया जबकि अबतक अनेक लोकसभा और विधानसभा चुनावों में इक्का-दुक्का मामलों को छोड़ दिया जाये तो एग्जिट पोल के परिणाम वास्तविक परिणाम के बहुत करीब नज़र आते रहे हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में इन्हीं चैनल्स और सर्वे एजेंसी का परिणाम वास्ताविक चुनाव परिणाम से 82 से 99.6 प्रतिशत तक सटीक रहा था.

कांग्रेस एवं इंडी गठबंधन के प्रवक्ताओं के साथ ही नेताओं ने भी चैनल्स एवं सर्वे एजेंसी के सैंपल साइज एवं उसकी प्रक्रिया पर सवाल उठाये साथ ही जिन लोगों से सर्वे के संदर्भ में बातचीत की गयी, उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाये गये.

निश्चित रूप से जिस पक्ष के खिलाफ में एग्जिट पोल के आँकड़े जायेंगे, उससे स्वागत की अपेक्षा तो नहीं की जा सकती है लेकिन फिर भी संयमित व्यवहार की अपेक्षा हर एक राजनीतिक दल से होती है भले ही परिणाम उसके पक्ष में हो या खिलाफ.

बहरहाल 1 जून को श्री खड़गे के आवास पर इंडी गठबंधन के सभी नेताओं की बैठक हुई और उसमें भाग लेने वाले सभी नेता अपने-अपने क्षेत्र में जा चुके हैं ताकि परिणाम के दिन वे सभी अपने-अपने प्रदेश में डटे रहें. लेकिन अब मामला धीरे-धीरे उस दिशा में करवट लेना शुरू कर चुका है जिसकी आशंका पहले से व्यक्त की जा रही थी. सत्ता पक्ष के अनेक नेताओं ने पहले से यह आशंका व्यक्त की थी कि अंतिम चरण के चुनाव के बाद कांग्रेस एवं इंडी गठबंधन के सभी नेता न केवल इवीएम पर सवाल खड़े करेंगे बल्कि संपूर्ण चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता के मामले में भी लोगों को प्रभावित करने की कोशिश करेंगे. 

1 जून के बाद 2 जून को दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में कांग्रेस नेताओं की महत्वपूर्ण बैठक हुई जिसमें मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, के सी वेणुगोपाल, जयराम रमेश और अन्य अनेक नेताओं ने भाग लिया. फिर उन नेताओं ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में अपने प्रत्याशियों से भी बातचीत की और उन्हें मतगणना के संदर्भ में अनेक दिशानिर्देश दिये. लेकिन इसके पश्चात जयराम रमेश ने एग्जिट पोल को फिक्सिंग बताया. 

रमेश के ही शब्दों में, जिस व्यक्ति का एग्जिट 4 जून को तय है उन्होंने ये सरकारी एग्जिट पोल करवाये हैं. ये बिल्कुल जाली है, बिल्कुल नकली है, बिल्कुल झूठे हैं. इंडिया जनबंधन की पार्टियों को 295 से कम नहीं मिलने वाला है.

जयराम रमेश की ये सारी बातें उस आधार को तैयार करती प्रतीत होती है जिसके कारण पूरे देश में आंदोलन खड़ा करने के साथ ही सुप्रीम अदालत में याचिका दायर कर चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़ा किया जायेगा.

वास्तव में अब यह कांग्रेस और इंडी गठबंधन के अनेक दलों की पुरानी पहचान बन चुकी है कि यदि वे चुनाव जीत जाते हैं तब तो ठीक है अन्यथा हार जाने के बाद सम्पूर्ण चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करना ही है.

हकीकत यह है कि जमीनी स्तर की एक प्रतिशत समझ रखनेवाला व्यक्ति भी यह बात अच्छी तरीके से जान रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ही भारतीय जनता पार्टी और एनडीए के सभी गठबंधन दलों ने प्रत्येक चुनाव क्षेत्र के अनुरूप अपनी प्रभावी रणनीति तैयार की और उसका कार्यान्वयन भी किया. रणनीति तैयार करने के मामले में कांग्रेस और उसके साथी दल फिसड्डी साबित हुए. 

शुरू से लेकर अंत तक उनकी कमजोरी अनेक बार जगजाहिर हुई. प्रत्याशियों की घोषणा काफी देर से की गयी. इसके अलावा विविध दलों के जमीनी स्तर के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं का आपसी समन्वय भी अचंभित करनेवाला रहा. अपेक्षा के प्रतिकूल पश्चिम बंगाल, केरल एवं पंजाब में इंडी गठबंधन के दल आपस में ही फ्री स्टाइल में लड़ते रहे. विविध दलों का आपसी समन्वय और सीट बंटवारा तो एक बात है लेकिन जमीनी स्थिति यह है कि इंडी गठबंधन के किसी एक दल ने जहाँ अपने प्रत्याशी को खड़ा किया तो उसी दल या दूसरे साथी दल के दावेदार भी उसी क्षेत्र में खड़े हो गये और उन्होंने वोट काटा भी. आपसी चकल्लस भी ज़बरदस्त हुए.

इंडी गठबंधन के नेता-प्रवक्ता भी शुरू से अजीब उलझन में रहे. द लल्लन टॉप में पत्रकार राजदीप सरदेसाई के एक वक्तव्य की ही बात की जाये तो चंडीगढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी मनीष तिवारी और अरविंद केजरीवाल के रोड शो के अगले दिन सुबह आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने केजरीवाल के पक्ष में धुरंधर तर्क देते हुए पत्रकारों से बात की. वहीं उसी दिन दोपहर जालंधर में वही प्रवक्ता केजरीवाल पर दोषारोपण कर उन्हें गाली देते हुए अपनी बातों को रख रहे थे. 

यह इंडी गठबंधन की अपनी कमियाँ और कमजोरियां है जो जमीन पर न केवल नेताओं, पत्रकारों, राजनीतिक विश्लेषकों को बल्कि, उन मतदाताओं को भी नजर आया जो सभी प्रत्याशियों के लिये माई-बाप थे और उन्हीं के वोट से ही उन्हें विजय मिलेगी जिससे वे शासन करेंगे. यही गतिरोध और अविश्वसनीय वातावरण पूरे देश के अनेक लोकसभा क्षेत्रों में न केवल ऊपरी तौर पर बल्कि जमीनी स्तर पर मतदाताओं के बीच भी था. कांग्रेस और इंडी गठबंधन के नेताओं ने अपने समर्पित मतदाताओं को भी दिग्भ्रमित किया. 

उन्हें शिकार बनाकर लंबे समय तक अंधेरे में रखा और 1 जून को जब अंतिम चरण का चुनाव और 1 जून को जब अंतिम एवं सातवें चरण का चुनाव समाप्त हो गया तो कांग्रेस के नेता भले ही कितनी भी बड़ी-बड़ी बातें कर लें लेकिन जमीनी सच्चाई का अंदाजा उन्हें भी था. तभी तो उन्होंने एग्जिट पोल से संबंधित विभिन्न टेलीविजन चैनल्स के कार्यक्रमों का बहिष्कार करने का निर्णय लिया. लेकिन 2 जून को कांग्रेस के मीडिया सेल के प्रमुख जयराम रमेश के वक्तव्य से यह स्पष्ट हो चुका है कि कांग्रेस उसी कथित प्याले के तूफान को अब पूरे देश में फैलाने की तैयारी कर रही है. 

वैसे तो 4 जून को परिणाम क्या आयेगा इसका पता तो तभी चलेगा जब पूरे देश के 543 मतगणना केन्द्रो में इवीएम का मुँह खुलेगा और दोपहर तक अधिकांश परिणाम सामने आ जायेंगे. लेकिन चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस और उसके नेता. वे इतने मासूम भी नहीं हैं कि उन्हें जमीनी स्थिति का अंदाजा न हो और आज जयराम रमेश द्वारा दिये गये वक्तव्य से इतना स्पष्ट है कि सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने, मुख्य निर्वाचन आयुक्त से मुलाकात कर अपनी बातों को रखने जैसी कोशिश शुरू होगी. 

अपनी मांगों के समर्थन में पूरे देश में आंदोलन खड़ा करने की भूमिका कांग्रेस के द्वारा तैयार की जा रही है.आनेवाले कुछ दिनों में संभावित रूप से इवीएम में छेड़छाड़ और फिक्सिंग का आरोप लगाने, वीवीपैट एवं इवीएम का 100 प्रतिशत मिलान करने, इंडी अलायंस के सभी दलों की बैठक, आंदोलन के लिये समन्वय समिति का गठन, दो चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को गलत और असंवैधानिक बताने, पूरे देश में प्रेस कॉन्फ्रेंस और रैली-जुलुस-पुतला दहन, धरना, प्रदर्शन जैसे आंदोलन की घोषणा, माननीय राष्ट्रपति से इन मांगों पर मिलने, माननीय राष्ट्रपति द्वारा मोदी सरकार के लिये आयोजित औपचारिक विदाई भोज के बहिष्कार, नयी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के बहिष्कार, अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय मीडिया में इन सबका छप्पड़फाड़ कवरेजऔर देश के मीडिया के एक खास समूह का रोना-धोना. यही नज़ारा अगले कुछ दिनों में नज़र आ सकता है.

दूसरी ओर अब भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं के साथ मीडिया के एक बड़े समूह द्वारा समय-समय पर व्यक्त की जा रही उस आशंका को भी खारिज नहीं किया जा सकता जिसमें जॉर्ज सोरोस एवं अन्य अनेक प्रभावशाली लोगों द्वारा भारतीय चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप की आशंका जतायी जाती रही है. इस मामले में उस एक रहस्यमयी विदेशी व्यक्ति की चर्चा भी कहीं दबे मुँह से तो कहीं खुली जुबान से पूरे देश में की जा रही है जिसपर डोनाल्ड ट्रंप और इमरान खान जैसों की सत्ता से बेदखली की साज़िश में शामिल होने तथा कथित रूप से उसी विदेशी नागरिक के कुछ दिनों पहले भारत आने की बातें की जा रही है. 

वैसे हकीकत क्या है और आने वाले दिनों में ऊँट किस करवट बैठेगा.. यह तो आनेवाला समय ही बतायेगा. लेकिन अबतक कांग्रेस एवं अन्य अनेक दलों व उसके नेताओं की गतिविधियों, अनेक स्वयंसेवी संगठनों, मीडिया संस्थानों के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय के कुछ महत्वपूर्ण अधिवक्ताओं की गतिविधियों का आकलन किया जाये तो इस बात आशंका बलवती होती है कि अब सभी मिलकर उस एक चिंगारी को हवा देने में जी-जान से जुट सकते हैं जिसका रास्ता बहुत आगे तक जाता है. 

संभव है कि शाहीन बाग या फिर सीएए के खिलाफ हुए आंदोलन की तरह इसकी कीमत देश की एक बड़ी आबादी को जमीनी स्तर पर एवं हमारी अर्थव्यवस्था को चुकानी पड़े. इसके कारण सामाजिक सौहार्द पर काला बादल मंडराने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

*लेखक संतोष दीपक एक प्रख्यात समाजसेवी हैं। 

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