*Image credit Manthan India

झारखंड हाई कोर्ट और विभिन्न जिलों के दो दर्जन से ज्यादा वकीलों ने वनाधिकार कानून के अनुपालन में सरकार द्वारा बरती जा रही गड़बड़रियों के खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई की पहल का निर्णय लिया। इसके लिए वनाधिकार मंच के लीगल सेल का गठन किया गया।
 रांची में झारखंड वनाधिकार मंच द्वारा वनाधिकार कानून पर आयोजित कार्यशाला में सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता और उपरोक्त बाते सुप्रीम कोर्ट की वकील और जनजातिय कार्य मंत्रालय के साथ जुड़ी कानूनी सलाहकार शोमाना खन्ना ने कहा। शोमोना खन्ना ने झारखंड के अधिवक्ताओं को अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार अधिनियम और वनाधिकार कानून को साथ जोड़कर काम करने की वकालत की।
 
“वनों पर आश्रित और ऐतिहासिक अन्याय से निजात पाने में संघर्षरत आदिवासी समुदाय के लिये वनाधिकार कानून का प्रभावी अनुपालन समुदाय के विकास की कुंजी हो सकता है। लेकिन फिर भी, यह पाया गया है कि कानूनी प्रावधानों और नौकरशाही बाधा के कारण स्पष्ट समझ की कमी के कारण, वन निर्भर आदिवासी समुदायों को उनके सही दावों को प्राप्त करने में असमर्थ हैं। इसलिए कुछ कानूनी हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है।“उन्होंने कहा कि झारखंड जैसे राज्य में वनाधिकार वनों पर आश्रित समुदायों को जंगल पर मालिकाना हक देता है जो काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि वन विभाग और कल्याण विभाग की इस कानून को लागू करने में रुचि नही है। 

झारखंड वनाधिकार मंच के फादर जॉर्ज मोनोपॉली ने वनाधिकार के अनुपालन में जिला प्रशासन और वन विभाग द्वारा कानून के खिलाफ काम करने सम्बंधित कई केस को प्रस्तुत किया। वन भूमि के एक टुकड़े पर व्यक्तिगत मालिकाना हक एफआरए की सबसे बड़ी उपलब्धि नहीं हैं। वास्तव में क्या मायने रखता है कि जंगल, जो कि वन निर्भर समुदायों की आजीविका का एक साधन है, उन्हें वापस दिया जाये, ताकि वे इसे स्थायी तरीके से उपयोग करने के साथ-साथ इसे संरक्षित और प्रबंधित भी करें।“
 

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सुधीर पाल ने कहा कि झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य की परंपरागत विरासत के संरक्षण और संवर्धन तथा हाशिये के समुदाय के अस्तित्व की रक्षा के लिए यह जरूरी कानून है।

कार्यशाला में सभी सहमत हुए कि इस संबंध में, झारखंड के विभिन्न जिलों के अधिवक्ताओं का एक कानूनी सेल होना चाहिए रामर्श, तकनीकी निविष्टियाँ और वन समुदायों को कानूनी सहायता प्रदान करना है।
कार्यशाला में हॉफमैन लॉ, इंडियन लॉयर्स एसोसिएशन तथा विभिन्न जिलों के अधिवक्ताओं ने भाग लिया। कार्यशाला में अधिवक्ता महेन्द्र तिग्गा, सुभशीष सोरेन, ए के रशीदी, योगेंद् प्रसाद, लक्ष्मी महतो, रमेश जेराई, सहित दो दर्जन से ज्यादा अधिवक्तों ने भाग लिया।

झारखंड वन अधिकार मंच, राज्य में नागरिक संगठनों का एक साझा मंच है और वनों पर आश्रित समुदायों के हक़ों की वकालत करने वाला राज्यव्यापी नेटवर्क है। अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना के उद्देश्य से आयोजित कार्यशाला में सुभाशिश रसिक सोरेन, फदर महेन्द्र पीटर टिग्गा सहित झारखंड के विभिन्न जिलों से आये अधिवक्ता और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि मौजूद थे।

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