जुलाई १ सामने है ।उस दिन वन महोत्सव  है और इस दौरान काफी उत्साह से पौधे लगेंगे। पौध रोपण में क्या सावधानियां बरतें इसपर कुछ जानकारियाँ साझा कर रहा हूँ।

गड्ढों का साइज कम से कम 2x2x2 फ़ीट का अवश्य रखें। अक्सर इसमें चूक होती है। गड्ढे बनाने में एक आवश्यकता यह होती है कि पौधों की जड़ें आसानी से नीचे की ओर बढ़ें। गड्ढे बनाते समय आपको स्वयं पता चल जाएगा कि गड्ढे के तलहटी की मिट्टी काफी सख्त है। छोटे पौधें की जड़ें इन्हें पार करने में काफी समय लेती हैं।कभी कभी तो एक साल से अधिक लगा देती हैं। यह समय पौधों के जीवित रहने के लिए काफी जोखिम भरा होता है, यथा जाड़े में पाले का और गर्मी में गर्म शुष्क हवा में मरने का जोखिम।

गड्ढे की मिट्टी यदि हल्की फुल्की हो तो बरसात के तीन चार महीनों में इनकी जड़ें तेज़ी से बढ़कर 2 फ़ीट या उसके नीचे पहुँच जाती हैं। इस प्रकार उनके मरने की जोखिम घट जाती है। ध्यान देने की बात यह है कि बरसात के बाद जमीन में नमी का स्तर नीचे उतरता जाता है। अलग अलग मिट्टियों में इसकी गति अलग अलग होती है। निचली खेत के केवाल मिट्टी में धीरे, दोमट में मध्यम, और उपरवार जमीन की रुगड़ा मोरम मिट्टी में तेज़ी से नमी का ह्रास होता है। उपरवार जमीन में गर्मी में नमी का स्तर औसतन दो से ढाई फुट उतर जाता है।

ऐसी स्थिति में पूरा खेल इसपर निर्भर करता है कि जड़ के बढ़ने की गति, नमी के उतरने की गति से तेज़ है तो पौधे जीवित रहते हैं नहीं तो उनकी निर्भरता सिंचाई पर टिकी रहती है। सिंचाई में चूक हुई तो पहले बढ़वार पर प्रतिकूल असर पड़ता है और फिर पौधे सूख जाते हैं।

गड्ढों में खाद डालने का महत्व भी इस कारण है कि यह जड़ों के बढ़वार को गति देता है।

गड्ढों का उथला होना और खाद का कम उपयोग होना ही रोपण के बाद पौधों के सूखने का मुख्य कारण होता है।
इसके अलावे, पौधों की थालों में बरसात का पानी भर जाने से भी शिशु पौधों को नुकसान होता है।

अतः गड्ढों को खोदने के साथ साथ उनके भरने की भी सही जानकारी आवश्यक है। गड्ढों को उल्टे कटोरी या हल्के गुम्बद की तरह उत्तल सतह बनाते हुए भरें । इसी ढांचे के मध्य में ऊंचे स्थान पर पौधे लगावें। इस तरह जड़ के पास पानी जमा न होकर, थाले की परिधि में बनी नाली में जमाव हो ऐसा इंतेज़ाम करें।

गड्ढों की मिट्टी भरने में भी सावधानी बरतें। ऊपर की मिट्टी जो सामान्यता ज्यादा उर्वरा होती है, उससे नीचे के आधे हिस्से तथा नीचे से निकली मिट्टी से ऊपर के आधे हिस्से भरें ताकि मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरा भी जड़ों के विकास में योगदान दें।

गोबर का कच्ची खाद पौधों को नुकसान पहुँचाता है। गोबर अपने सड़ने के क्रम में ताप पैदा करता है और ,मिट्टी में उपलब्ध नाइट्रोजन को अपने विघटन के लिए सोख लेता है। इससे पौधों के वृद्धि के प्रारंभिक अवस्था में नाइट्रोजन की अस्थायी कमी हो जाती है। कच्चा गोबर दीमक को भी आकर्षित करता है और पौधे के जड़ को नुकसान पहुँचाता है।अतः अच्छी तरह से सड़ी और भुरभुरी खाद का ही प्रयोग करें।

यदि खल्ली का उपयोग कर रहें हों तो उसे पीट कर भुरभुरा बना कर ही मिट्टी में मिलावें। अम्लीय या लाल मिटी में चूना का प्रयोग लाभदायक होता है। प्रति गड्ढा आधा किलोग्राम बुझा चूना डालें। यह मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता को भी बढ़ाता है।

संक्षेप में अपनी बात को रखें तो वे सारे प्रयोजन जो बरसात के चार महीने(जुलाई से अक्टूबर) में पौधों की जड़ों को दो फुट या अधिक गहरी तक ले जाने में सहायक हों , किया जाय तो पौधों के सूखने की दर को कम कर सकते हैं।

यह सर्वमान्य अनुभूति है कि वन महोत्सव की असली खुशी पौधों को लगाने में नहीं, उसे बचाने और बड़े करने में है।

(लेखक  डॉ शिवेन्द्र कुमार एक जाने मानें कृषि विशेषज्ञ है। ये भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्लान्दू, राँची स्थित शोध केन्द्र के प्रधान रहे हैं। 1978 बैच के कृषि वैज्ञानिक , बागवानी फसलों एवं कृषि वानिकी के शोध क्षेत्र में चार दशकों का अनुभव रखते है। वर्तमान समय में फल एवं सब्जी फसल प्रवंधन, माइक्रो इर्रीगेशन, एवं लैंड यूज़ प्लानिंग विषयों के परामर्शदाता हैं। )
 

-----------------------------Advertisement------------------------------------Jharkhand School of Exccellence Hamin Kar Budget 2023-24
--------------------------Advertisement--------------------------MGJSM Scholarship Scheme

must read