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कर्म पर्व एक प्राकृतिक पर्व है, इसे आदिवासी और मूलवासी के लोग बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। झारखंड के लोक पर्व बोलने से ही उसका सीधा संबंध प्राकृतिक की ओर जाता है। इस पर्व में बहनें अपने भाइयों के लिए लंबी दीर्घायु तथा अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं। करमा पर्व कर्म और धर्म के बीच में समन्वय स्थापित कर चलने का संदेश देता है।

झारखंड राज्य में साल का सबसे पहला प्राकृतिक पर्व सरहुल होता है, जिस समय पेड़ पौधे में नए-नए पत्ते पत्तियां आना शुरू होती हैं उसी समय ये पर्व मनाया जाता है। सरहुल में अच्छी बारिश के लिए पूजा किया जाता है। प्राकृतिक का दूसरा पर्व करम अच्छी फसल हो इसी के लिए पूजा किया जाता है।

 * करम पूजा कब और क्यों किया जाता है ?*

इस पूजा को भाद्रपद के शुक्ल पक्ष के एकादशी (११ वीं दिन) पर किया जाता है।
भाई बहन का अटूट प्रेम को बनाए रखने के लिए इसे मनाया जाता है। इस पर्व को सभी लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ इसलिए मनाते हैं क्योंकि इस समय सभी किसान लोगों का खेतों में काम खत्म हो जाता है। सभी लोग करम देवता की पूजा करते हैं और अच्छी फसल की दुआ मांगते हैं।

* करम पूजा करने का खास विधि - विधान किस तरह से किया जाता है ?*

इस पूजा को खासकर कुंवारी लड़की करती हैं, जिसे करमइती कहते हैं। इसके लिए 3 या 5 या 9 दिन का जावा/ बालू उठाया जाता है। 9 दिन तक उपवासी लड़की बिल्कुल सादा भोजन करती हैं और पूरे 9 दिन तक सुबह और शाम को करम गीत गाकर जावा को जगाती है।
पांचपरगनिया तथा कुरमाली में जितने तरह के नेग - नीति ( विधि - नियम) होते हैं उतने ही तरह के लोकगीतों भी मिलते हैं। जैसे कि :- जावा/ बालू उठाने का गीत, जावा को घर घुसाने का गीत, जावा जगाने का गीत, फूल लहर ने का गीत, करम काटने का गीत, करम काटकर घर लाने का गीत, पूजा का गीत, पूजा के समय पर वर/आशीष मांगने का गीत, पूजा के बाद घर जाने का गीत, विसर्जन गीत... इत्यादि।

* जावा/बालू उठाने का नियम :-*

जितनी सारी कुंवारी लड़कियां (करमइती) सभी कोई नया-नया डालिया ( जो बांस का बना होता है) लेकिन गांव के बाहर के नदी, तालाब, डोभा या नहर की ओर नाचते - गाते - झूमते हुए चले जाते हैं। जिस डलिया में जावा उठाने का होता है उस डलिया को पहले अच्छी तरीके से रंग बिरंगे रंगों से रंगा जाता है। उसमें 8 कलाई ( कुरती दाल, चना, जौ, तिल, गेहूं, मकई, सरसों, सुरगुंजा ), धान का पौधा झींगा फूल हल्दी...इत्यादि रहता है।
इस समय गाए जाने वाला गीत है :-
*काहां केर डोम डाली, काहां केर सरू बाली।*
*लोवाहातु केर डोम डाली, कांची नदिक सरू बाली।।*

जावा उठाकर फिर से नाचते - गाते - झूमते हुए वापस जिस घर में पूजा होता है वहां चले आते हैं।

* जावा/बालू वाले डालिया को घर घुसाने का नियम :-*

सभी करमइती उस घर में पहुंच जाते हैं और घर में घुसने से पहले थोड़ा नेग - नीति करते हैं फिर उस समय एक अलग गीत गाते हैं :-
*झींझीर मुसा झींझीर मुसा जावा ना काटिहा गो।*
*भौईरसी आइगे जोलबूं मूसा तेंतैइर सोंटाय सोंठबूं गो।।*

इस गीत को गाते - गाते जावा को एक जगह पर रख देते हैं, उसके बाद सभी कोई अपने - अपने घर चले जाते हैं। फिर शाम को सभी करमइती लोग आते हैं और जावा को जगाने के लिए गीत गाते हैं :-
*इति - इति जावा किया - किया जावा ,*
*जावा जागलों मोंय धान - भौउरा ।*

गीत गाते गाते जूना धूप भी करते हैं, इसी तरह से पूरे 9 दिन तक जावा गीत गाकर जगाते हैं।


दशमी दिन करम राजा को निमंत्रण देने के लिए जाना पड़ता है। निमंत्रण वही देने जाता है जो उपासक होता है, करम वृक्ष के पूरब तरफ़ के दो चंगी वाले डाली को माला से बांधा जाता है और करम देवता को बोला जाता है कि हमलोग कल ढोल नगाड़े के साथ आएंगे आपके पास आपको हमारे साथ चलना होगा। निमंत्रण देने के समय ले जाने वाले डलिया में सिंदूर, बेल पत्ता, घूंड़ी (अरवा चावल को पीसकर बनाया जाता है) सुपारी, संध्या दीया आदि रहता है।

*फुल लहरने ( फूल तोड़ना) जाने का नियम :-*

एकादशी के दिन सुबह ही सभी करमइती लोग फुल लहरने के लिए अपने आस-पास के जंगल चली जाती हैं। फूल, पत्ता, घास, धान इत्यादि जो - जो मिलता है सबको एक नया खांची ( बांस का बना हुआ बड़ा सा टोकरी) में भर देते हैं।
इस समय भी एक खास गीत गाया जाता है :-
*डाला ले डाला ले फूल लहरे जाई, वने बांसी के रे बाजाय ।*
*बांसी सुनी बांसी सुनी दिलो नी धोराय।।*
*बाजाय बांसी के रे बाजाय...*

इस गीत को गाते-गाते सारे करमइती लोग फूल तोड़ते हैं और उसके बाद सभी कोई जंगल के नजदीक वाले नदी या सरोवर में नहा धोकर करम वृक्ष के पास पहुंच जाते हैं, वहां पर पहले से ही मुख्य उपासक पहुंचे हुए रहते हैं।

*करम काटने का नियम :-*

इस समय भी एक खास गीत होता है जिसको गा-गा कर करम डाली को काटा जाता है :-
*करम काटे गेले दादा करम नाही पाले,*
*करमइती बहिन दादा ससूर घोरे।*
*करम काटे गेले दादा करम नाही पाले,*
*करिया बहू पाले दादा मुंह मेचकाले।*
*दें दादा दे दादा करम काइट दे,*
*दे भौउजी दे भौउजी दोना टिप दे।*

* करम डाली काट कर घर लाने का नियम :-*

उपासक और करमइती लड़की लोग ही इस डाली को छू सकते हैं, करम देवता को लाते समय जमीन में कहीं नहीं रखा जाता है जब तक कि घर ना पहुंचे। लाते - लाते भी एक गीत गाया जाता है :-
*केकोर डोरे करम राजा गांव सामाले,*
*केकोर डोरे करम राजा गांव बाहराले ।*
*लूतिक डोरे करम राजा गांव सामाले,*
*माछिक डोरे करम राजा गांव बाहराले।।*
*आइज तो रे करम राजा घोरे दुवारे,*
*काइल तो रे करम राजा सात नदिक पारे।*

इस गीत को गाते - गाते घर तक पहुंचते हैं और इसे जिस जगह पर पूजा किया जाता है, उस जगह पर गाढ़ दिया जाता है। उसके बाद सभी कोई अपना - अपना घर चले जाते हैं फिर नया कपड़ा, साड़ी पूरा पूजा का सामान को एक नया खांची में लेकर पूजा स्थान पर पहुंच जाते हैं।

* करम पूजा का नियम :-*

पूजा पूजा के समय गांव के सारे गन्य - मान्य व्यक्ति तथा बूढ़े - बुजुर्गों, माताएं- बेटियां , भाई - बहन सब कोई पूजा सुनने के लिए वहां पर उपस्थित हो जाते हैं।

*पूजा के लिए मुख्य सामग्रियां हैं :-*
सिंदूर, धुना- धूप, खीरा ( जिसे बेटा के रूप में मानते हैं) तागा- धागा ( जिसे कलाई पर बांधा जाता है), संध्या दीया, चुउरा, गुड़, मधु, दूध - दही, घी, अरवा चावल, हरतकी (वनफल), सुपारी, पान पत्ता, दूध घास, बेल पत्ता...इत्यादि समान मौजूद रहता है। वैसे तो झारखंड के जितने भी प्राकृतिक पर्व - त्यौहार होते हैं, वे सारी पूजा पाहान ही करती हैं। लेकिन आजकल तो कोई कोई जगह में ब्राह्मण से भी पूजा करवाया जाता है। पूजा शुरू होने के पहले सभी करमइती लोग करम देवता के चारों ओर बैठ जाते हैं। इस समय भी एक खास गीत गाया जाता है :-
*खार - खीर खीरा न घानी दूईएक चुउरा,*
*हामें ससूर जावफ करमैक सेवा।*
*बाकी रे धनी - धनी...*
*आंकरि बारिक सांकरि तो कोइरी बारिक खीरा,*
*हामें ससूर जावफ करमैक सेवा।*
*बाकी रे धनी - धनी...*

इस गीत को गाते समय नाचते भी हैं और ठीक उसके बाद सभी कोई अपने - अपने आसन पर बैठ जाते हैं। सभी कोई बारी-बारी से करम डाली के पत्ते को पकड़ते हैं और पाहान बारी-बारी से सभी को आशीष मांगने के लिए बोलता है।

*पाहान :- डाइर धोइर - धोइर का पाला गो ?*
*करमइती :- आपन करम भाईऐक धरम ।*
*पाहान :- आरो जे ?*
*करमइती :- निखे - सुखे छूवा - पूता रोहुन ।*
( सभी कोई अपना अपना दुख - दर्द करम राजा को सुनाते हैं।)

फिर एक खास गीत है जिसे गाकर वर/आशीष मांगते हैं :-
*करमेका एकादशी डाला लेले फूल लहरी जाई,*
*देनो करम राजा मांगाए देनो वर ,*
*कतैईक दिन राखबे कुंवर ।*

इस गीत के बाद सभी कोई पाहान को प्रसाद तथा तागा कलाई में बांधते हैं और अपने-अपने जगह पर बैठ जाते हैं।
फिर पाहान करम कहानी बोलना शुरू कर देते हैं।
*यह कहानी बहुत ही ऐतिहासिक और बहुत ही प्रेरणादायक कहानी है जिसे हमलोग करमा और धरमा के कहानी नाम से जानते हैं। इस कहानी में बताया जाता है कि पृथ्वी लोक में कब से कर्म पूजा शुरू हुई, किस तरह से शुरू हुई और इसकी क्या - क्या विशेषताएं हैं ?*
करमा और धरमा की कहानी खत्म होते ही वहां पर उपस्थित सारे लोग एक खास गीत गाते हैं :-
*आइज रे करमेका राती...*
*डाइर धोइर - धोइर गोपीन साउब मांगोय बेटा - बेटी।*
*आइज रे करमेका राती ।*

इस गीत के समाप्त होते ही सभी को अपने-अपने घर की ओर चले जाते हैं और घर के जितने भी सदस्य हैं सबको प्रसाद और तांगा बांधते हैं। फिर रात में गांव के जितने भी लोग माताएं - बहने, बड़े - बुजुर्ग सभी को ही करम आखड़ा कहां जाते हैं। वहां पर विभिन्न तरह के ढोल - नगाड़ा, मंदिर या फिर आजकल तो साउंड सिस्टम भी आ गया है यही सब बजाके या अपने से गाते हैं और पूरी रिझ - रंग के साथ रात भर नाच - गान करते हैं। सुबह जैसे ही होता है वैसे ही सभी करमइती लोग करम राजा को चुमाने ( पूजा जैसा छोटा सा नियम ) करते हैं और घर के कोई बड़े लोग पुरुष या महिला अपने-अपने खेत की ओर सिंदूआर, भेलवा आदि का डाली को काट कर ले जाते हैं और उसे खेत के बीचों-बीच गाढ़ देते हैं। इसे गाढ़ने का मान्यता है कि खेत में किसी प्रकार के रोग - दुःख नहीं होता है। ठीक उसी प्रकार अगर हम इसे वैज्ञानिक दृष्टि के साथ देखें तो अगर हम किसी डाली को अपने खेतों के बीचों-बीच गाढ़ देते हैं तो उसमें पक्षियों का बैठने का जगह बन जाता है जिससे कि पक्षी वहां बैठकर खेत में कीड़े मकोड़े को देख सके और अपना आहार बना सके। इस प्रकार से खेतों में फसलों की रक्षा होता है। यह सब करने के बाद सभी कोई करम राजा को विसर्जन करने के लिए ले जाते हैं। इस समय भी एक खास गीत गाया जाता है :-
*जाहू - जाहू करम राजा एहो - छयो मास ,*
*आवत भादर मास आनी रे घुराम।*
*जोखोंन तोंय करम राजा घोरे - दुआरे,*
*तोखोंन मोंय करम राजा नोहियरे।*
*जोखोंन तोंय करम राजा श्रीवृदांवने,*
*तोखोंन मोंय करम राजा ससूर घोरे।*

विसर्जन करने आते समय सभी को ढोल - नगाड़े के साथ नाचते गाते झूमते हुए जहां से बालू / जावा उठाया गया था वहीं पर जाकर इसकी विसर्जन कर देते हैं। फिर सभी करमइती लोग पारना करके अपना - अपना घर चले आते हैं।

लेखक :- कुमार हेमंत (Blogger & YouTuber @ Ranchirockers18 & Tech Ranchi) की कलम से ।
 

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