भारती श्रमजीवी पत्रकार संघ की झारखण्ड राज्य इकाई झारखण्ड जर्नालिस्ट एसोसिएशन का 5 सदसीय प्रतिनिधिमंडल झारखण्ड के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर से मुलाक़ात कर लगभग 6 वर्षों से लंबित 'झारखंड पत्रकार सम्मान पेंशन योजना' के तहत सेवानिवृत पत्रकारों को पेंशन चालू करने की मांग की. 

शनिवार के दिन  बीएसपीएस के राष्ट्रीय महासचिव शाहनवाज़ हसन, राष्ट्रीय सचिव चंदन मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार श्याम किशोर चौबे, ललन पाण्डेय, आकाश कुमार, मनोज गोप एवं नईमूल्ला खान द्वारा वित्त मंत्री के आवास पर पत्रकारों की दो प्रमुख लंबित मांगो(पत्रकारों के पेशन एवं पत्रकार स्वास्थ बीमा योजना)पर लंबी चर्चा हुई. 

प्रतिनिधिमंडल ने मध्य प्रदेश, हरियाणा, सहित अन्य राज्य सरकारों द्वारा बनाई गई नियमावली की प्रति भी ज्ञापन के साथ सोंपी. झारखण्ड जर्नालिस्ट एसोसिएश ने ज्ञापन के माध्यम से कहा है कि तत्कालीन झारखंड सरकार द्वारा 27 अगस्त 2019 को लिए गये कैबिनेट के निर्णय के आलोक में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा 16 सितम्बर, 2019 को अधिसूचित ‘झारखंड पत्रकार सम्मान नियमावली 2019’ (सं-07/पत्रकार-02-02/2019-ज. स. नि....) के प्रति आप को सौंप रहा हूं. 

अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि किन्हीं कारणों से उक्त नियमावली पांच साल से भी अधिक समय बीत जाने के बावजूद लागू नहीं की जा सकी है।हमारा विश्वास है कि झारखण्ड की लोकप्रिय सरकार उक्त नियमावली आवश्यक संशोधनों के साथ लागू कर सेवानिवृत्त पत्रकारों के हित में महत्वपूर्ण कदम उठाएगी।

ज्ञापन में कहा गया है कि झारखण्ड के राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने विगत 6 दिसंबर 2024 को षष्ठम विधानसभा के प्रंथम सत्र को संबोधित करते हुए अपने अभिभाषण के तृतीय पृष्ठ में स्थित दसवें बिंदु में आश्वस्त किया था कि ‘राज्य में निबंधित सभी पत्रकारों के लिए प्रशिक्षण, बीमा और पेंशन का अधिकार सुनिश्चित किया जाएगा’। 

हमारी समझ से अब वह समय आ गया है, जब सितंबर 2019 में अधिसूचित *झारखंड पत्रकार सम्मान पेंशन नियमावली* को संशोधित कर अधिक उपयोगी बनाते हुए लागू किया जाय।ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त नियमावली तत्कालीन सरकार ने बेहद हड़बड़ी में गठित की थी। वह नियमावली लागू करने पर बहुतेरे सेवानिवृत्त बुजुर्ग पत्रकारों का हित कतई नहीं सध सकेगा और वे पेंशन लाभ से वंचित रह जाएंगे। 

उस नियमावली में पेंशन के लिए कतिपय ऐसे अव्यावहारिक बिंदु निर्धारित किये गये हैं, जिनकी कसौटियोें पर खरा उतरना किसी-किसी के लिए ही संभव हो सकेगा। वित्त मंत्री को लिखे पत्र अवगत होंगे ही कि राज्य में पत्रकारों की आर्थिक स्थिति कतई सुदृढ़ नहीं है। मीडिया संस्थान पत्रकारों से काम बेशक लेते हैं लेकिन उनकी सामाजिक सुरक्षा के नाम पर पीछे हट जाते हैं। एक तो अधिकतर पत्रकारों को स्थायी नौकरी नहीं दी जाती, दूसरे उनकी ईपीएफ जैसी सुविधा को नजरअंदाज कर दिया जाता है। 

यही कारण है कि भविष्य की चिंता छोड़ वर्तमान पर ध्यान देते हुए कई पत्रकार बार-बार मीडिया संस्थान बदलने को बाध्य हो जाते हैं। इसलिए उक्त नियमावली में निर्धारित बिंदुओं पर खरा उतरना हर जरूरतमंद के लिए संभव नहीं हो सकेगा। इस परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री से आग्रह किया गया है कि उक्त नियमावली के कुछ बिंदुओं को संशोधित कर यथाशीघ्र लागू कराया जाए.

इस संशोधन का बिंदुवार सुझाव इस प्रकार है: 1. इस नियमावली के विंदु संख्या 3.3(ए) और 7.2(सी) में पेंशन का लाभ प्राप्त करने की पात्रता के लिए 20 वर्षों तक ईपीएफ मेम्बरशिप अनिवार्य बतायी गई है। इस शर्त के कारण अधिकतर पत्रकार पेेंशन सुविधा से वंचित हो जाएंगे क्योंकि बहुतेरे पत्रकार या तो ईपीएफ लाभ से वंचित हैं, या उनको यह सुविधा अत्यंत कम अवधि के लिए प्राप्त हुई। 

आपसे निवेदन है कि इस विंदु को या तो विलोपित कर लाभार्थी पत्रकारों से शपथ पत्र ले लिया जाय या इसे पेंशनेबल सेवा सीमा दस वर्षों की हद तक संशोधित किया जाय।

2. इस अधिसूचना के विंदु संख्या 7.2(बी) में इस हद तक संशोधन किया जाय कि यदि आवेदक को उसके संपादक द्वारा सेवा अवधि का प्रमाण पत्र नहीं दिया जाता है किंतु वह सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा अधिमान्यता प्राप्त है तो उसी को प्रमाण पत्र मान लिया जाय। आपको यह विदित ही होगा कि कई सेवानिवृत्त पत्रकारों ने मजीठिया वेतन आयोग की अनुशंसा लागू करने के निमित्त अपने प्रबंधन पर अदालत में मुकदमा दायर कर रखा है। 

ऐसी स्थिति में संबंधित संपादक से प्रमाण पत्र मिलना मुश्किल है। दूसरी बात यह कि जब लाभार्थी पत्रकार राज्य सरकार से अधिमान्यता प्राप्त है और उससे शपथ पत्र लिया ही जा रहा है तो उसे मान्यता भी देनी चाहिए। 

3. पत्रकार पेंशन योजना में सेवानिवृत्ति के समय सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा अधिमान्यता की शर्त व्यावहारिक नहीं है। इसकी जगह पर कम से कम तीन टर्म यानी छह वर्षों तक अधिमान्यता की शर्त जोड़ी जा सकती है।

4. इस नियमावली के तहत पत्रकार पेंशन सम्मान राशि प्रतिमाह 7,500/रुपये निर्धारित की गई है। इस भीषण महंगाई के दौर में यह राशि पति-पत्नी केवल दो लोगों के भी जीवन यापन के लिए ऊंट के मुंह में जीरे की छौंक ही साबित होगी। ऐसी स्थिति में यह राशि बढ़ाकर 20,000 (बीस हजार)/रुपये प्रति माह की हद तक संशोधित की जाय तो कुछ हद तक राहत मिलेगी। 

कहने की बात नहीं कि दिल्ली, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, पंजाब, हरियाणा जैसे कई राज्यों की सरकारें पत्रकार पेंशन योजना चला रही हैं। मध्यप्रदेश की वर्तमान सरकार ने पत्रकारों की पेंशन राशि 20,000/रुपये प्रतिमाह निर्धारित की है। (अनुलग्नक-2)। इसी प्रकार हरियाणा सरकार अपने राज्य के सेवानिवृत्त पत्रकारों को 15,000/ रुपये प्रतिमाह पेंशन लाभ दे रही है। (अनुलग्नक-3)। हमारा यह मानना है कि आपके नेतृत्ववाली हमारी सरकार किसी भी राज्य की सरकार से अधिक संवेदनशील है। 

इसलिए यह हमारे सुझावों पर सहृदयतापूर्वक विचार कर यथाशीघ्र यथोचित कार्रवाई अवश्य करेगी। हमेशा की तरह भविष्य में भी आपके सक्रिय और सार्थक सहयोग की अपेक्षाएं बनी रहेंगी।

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