*Representational image

रासायनिक खाद और हाइब्रिड बीज द्वारा उत्पादित फसलें शरीर के लिए काफी नुकसानदायक हैं। वहीं, जैविक खेती से उत्पादित फसलों में पौष्टिक तत्वों की उपलब्धता रहती है, जो कुपोषण दूर कर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। 

फसलों की गुणवत्ता बनी रहे, इस हेतु जैविक कृषि/ प्राकृतिक कृषि की तकनीक अपनाने की जरूरत है। उक्त बातें इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के नोडल अधिकारी डॉ.सिद्धार्थ विश्वास ने गव्य विकास निदेशालय द्वारा प्रशिक्षण एवं प्रसार केंद्र,धुर्वा में आयोजित कामधेनु अमृत कृषि कार्यशाला में कहीं।

डॉ.विश्वास ने कहा कि रासायनिक खादों के इस्तेमाल से शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियों की आशंका बनी रहती है। इसलिए हाइब्रिड बीज के बदले देसी बीज का उपयोग करना ज्यादा फायदेमंद हैं।

गोबर और गोमूत्र द्वारा तैयार किए गए खाद और कीटनाशक की चर्चा करते हुए डॉ.विश्वास ने कहा कि गोबर का वर्मी कंपोस्ट तैयार करने और गोमूत्र का उपयोग कीटनाशक के रूप में किया जाता है।गोमूत्र मिट्टी में मिलने से कीड़े-मकोड़े समाप्त हो जाते हैं। इसलिए जैविक कृषि में गोबर और गोमूत्र का उपयोग करने से फसलों की पौष्टिकता बनी रहती है।

उन्होंने कहा कि गोबर और गोमूत्र की ब्रांडिंग हो, तो जैविक कृषि को इससे बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने राज्य सरकार को भी इस दिशा में ठोस पहल करने की सलाह दी।

कार्यशाला के दौरान उन्होंने अमृत कृषि में गोबर और गोमूत्र की भूमिका और योगदान पर पशुपालकों को महत्वपूर्ण जानकारियां दी।

अमृत कृषि तकनीक अपनाएं, आमदनी बढ़ाएं : डॉ.मुकुल प्रसाद सिंह कार्यशाला में गव्य विकास निदेशालय के सेवानिवृत्त सहायक निदेशक मुकुल प्रसाद सिंह ने कहा कि इस दिशा में नवीनतम तकनीक मील का पत्थर साबित हो सकती है। गोबर और गोमूत्र का उपयोग कर कई कृषक आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं।

झारखंड के चाकुलिया में अमृत कृषि परियोजना पर किया जा रहा उल्लेखनीय कार्य: एके सिन्हा

विशेषज्ञ एके सिन्हा ने पशुपालकों को संबोधित करते हुए कहा कि गोबर व गोमूत्र से बने वर्मी कंपोस्ट एवं कीटनाशकों से फसलों की रक्षा की जा सकती है। उन्होंने बताया कि झारखंड के चाकुलिया में अमृत कृषि परियोजना पर उल्लेखनीय कार्य किया जा रहा है। यहां गोबर से खाद निर्माण के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य जारी है।

गव्य विकास निदेशालय के निदेशक शशि प्रकाश झा ने कार्यशाला के महत्व पर प्रकाश डालते हुए गोपालकों/पशुपालकों को गोबर और गोमूत्र का उपयोग अधिक से अधिक करने की सलाह दी। कार्यशाला के समापन के पूर्व पशुपालकों द्वारा गोबर गोमूत्र से संबंधित कई जिज्ञासाओं को भी स्पष्ट करते हुए अधिकारियों ने संतोषप्रद जवाब दिया और उन्हें इस तकनीक को अपनाने की सलाह दी। इस अवसर पर रांची जिला गव्य विकास पदाधिकारी श्री कौशलेंद्र कुमार सिंह, गव्य तकनीकी पदाधिकारी श्री मनोज कुमार व श्री ओमप्रकाश, सेवानिवृत्त गव्य विकास पदाधिकारी श्री अशोक कुमार सिन्हा, श्रीमती विभा देवी सहित काफी संख्या में किसान व पशुपालक मौजूद थे।

-----------------------------Advertisement------------------------------------ Hamin Kar Budget 2023-24
--------------------------Advertisement--------------------------MGJSM Scholarship Scheme

must read