मनरेगा दिवस के अवसर पर बृहस्पतिवॉर के दिन मनरेगा आयुक्त श्रीमती राजेश्वरी बी ने झारखंड राज्य के तमाम मनरेगा पदाधिकारी एवं कर्मी को ढेर सारी शुभकामनाएं  दीं। 

उन्होंने कहा कि  झारखंड में  मनरेगा को ऊपरी पायदान तक ले जाने का संकल्प लें। जिन मनरेगा मजदूरों के पास जमीन नहीं है, वैसे मजदूर कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण प्राप्त कर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि  मनरेगा के तहत 100 दिन का रोजगार प्राप्त करने के बाद मनरेगा मजदूरों को अब पलायन नहीं करना पड़ेगा। मनरेगा मजदूर अपने स्वेच्छा से कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण लेकर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।

*समाज, देश एवं राज्य के विकास में महिलाओं की भागीदारी होनी आवश्यक*

मनरेगा आयुक्त श्रीमती राजेश्वरी बी ने कहा कि महिलाओं की भागीदारी को अधिक से अधिक बढ़ाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है।  राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी दीदी बाड़ी योजना, बिरसा हरित ग्राम योजना से जुड़ कर महिलायें स्वाबलंबी बन रही हैं। सरकार की सोच है कि महिलाओं की आजीविका के साधन को बढाया जाये। मनरेगा के अंतर्गत चलने वाली कई योजनाओं से महिलाओं को रोजगार और स्वाबलंबन का मार्ग प्रशस्त हुआ है। महिलाएं दीदी बाड़ी योजनाओं में कार्य कर कूप निर्माण योजना से लाभान्वित हो कर या निर्माण योजना का लाभ उठाकर अपने परिवार का सहारा बन रही हैं । इससे उनमें एक नया आत्मविश्वास उभर रहा है । उन्हें आर्थिक रूप से स्वाबलंबी होने में मदद मिल रही है । उन्होंने कहा कि महिलायें पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर सकती हैं और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को संवार सकती है।

*झारखण्ड : रौशनी को मिली नई रौशनी* 

झारखण्ड में मनरेगा से लोगों के जीवन में आये बदलाव की कहानियाँ सुनी जा रही हैं। ऐसी ही एक कहानी रौशनी गुड़िया की है। खूंटी जिला के प्रखंड तोरपा की पंचायत हुसिर के गाँव गोपला, पकरटोली की रहने वाली हैं-रौशनी गुड़िया। एक समय था जब, ग्रामीणों के लिये तमाम योजनाएँ कार्यान्वित कराई जाती थीं। वह इनमें काम करती थीं, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि मजदूरी कितनी है। कौन भुगतान कर रहा है और कैसे कर रहा है। उन्हें काम नहीं मिला तो वह पति और बच्चों के साथ मुम्बई जा पहुँचीं। पूछने पर कि मुम्बई क्यों गई? बताती हैं कि कम-से-कम वहाँ काम तो मिलता था, भरपेट खाना हो जाता है। यहाँ तो काम भी सही से नहीं मिलता था। बाद में वह अपने पति और बच्चों के साथ गाँव लौट आई।

दरअसल, उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा था। सो, उन्हें लौटना पड़ा। यहाँ लौटकर वह गाँव में स्वयं-सहायता समूह में शामिल हो गई।  प्रशिक्षण लेकर खेतिहर काम करने लगीं, लेकिन इससे उनके परिवार का अच्छे से गुजर-बसर नहीं हो पा रहा था। पास के गाँवों में वह अपने पति के साथ मिलकर दिहाड़ी पर काम करने लगीं लेकिन, बीते साल हालात बदलने लगे। उन्हें ग्राम प्रधान की सहायता से मनरेगा में काम मिल गया। इसके बाद उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरुकता मिली। पकरटोली के ग्रामीणों की सहायता से उन्होंने गाँव में मनरेगा लागू किये जाने की योजना बनाने में हाथ बँटाया। वह बताती हैं, ‘हम सब योजना बनाए। फिर रोजगार सेविका को आवेदन लिखकर दिये कि हमें काम चाहिए। पहले तो रोजगार सेविका रिसिविंग नहीं दे रही थीं। फिर गाँव वालों के दबाव देने पर उसने रिसीविंग दिया। मस्टर रॉल निकला और हमें काम मिला।’

इस प्रकार, उन्हें और दूसरे ग्रामीणों को मनरेगा के तहत काम करने का अवसर मिल सका।  भूमि का समतलीकरण, बागवानी और बाँध बनाने जैसे तमाम कार्यों में उन्हें काम मिला। अब तक वह अपने पति के साथ मिलकर इस योजना के तहत करीबन 20 हजार रुपए कमा चुकी हैं। वह याद करते हुए बताती हैं कि मनरेगा के तहत उन्होंने करीब 90 दिन तक काम किया था। इससे उनका सामाजिक विकास होने के साथ ही जीवन में भी सुधार हुआ है। अब वह मुम्बई लौटने के बारे में सोचती तक नहीं हैं। वह बताती हैं कि मुंबई की फैक्ट्री में बच्चे को देखने के लिये कोई रहता नहीं था। बच्चे को साथ लेके भी हम कहीं काम करने नहीं जा सकते थे।

मनरेगा के काम के दौरान कम-से-कम बच्चों का देखभाल करने के लिये कोई तो होता है। बच्चा मेरे सामने होता है। आज उनकी वित्तीय स्थिति इतनी अच्छी हो गई है कि अभी हाल में उन्होंने एक मोबाइल खरीदा है। बच्चों की पढ़ाई पर भी खर्च किया है। परिवार को अच्छा भोजन भी मिलने लगा है। 

पहले मात्र चावल-दाल मिल पाता था। अब चपाती और हरी सब्जियाँ भी मिलने लगी हैं। रौशनी अभी मनरेगा के तहत बनने वाले एक तालाब में काम कर रही हैं। बताती हैं, ‘पहले घर में पैसे कौड़ी को लेकर खूब लड़ाई होती थी। आजकल वो भी कम हो गया है। घर में कुछ जरूरी काम होता है, उसका निर्णय भी मैं ही लेती हूँ। यहाँ तक कि मेरे पति जो भी करते हैं, वो पैसे मेरे हाथ में थमा देते हैं। मैं ही उसका इस्तेमाल कहाँ होना चाहिए, तय करती हूँ।’ यह देखकर हैरत ही होती है कि किस प्रकार रौशनी का सशक्तीकरण हुआ है। वह आज खुश हैं। अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर सफल नागरिक बनाना चाहती हैं।

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