हम अपने जीवन में अक्षय सुख खोजते हैं, यह सुख केवल सृजनकर्म में ही मिलता है. उक्त बातें डॉ मयंक मुरारी ने कहीं. वह आज जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान के बाद विचार व्यक्त कर रहे थे. डॉ मयंक ने कहा कि  जीवन में जाे भी जाेड़ता है, वह आनंद काे उपलब्ध हाेता है. जाे भी क्रिएट करता है, जाे भी सृजन करता है, जाे भी बनाता है, वह आनंद काे उपलब्ध हाेता है. रचना करना, सृजनकर्म से समाज में मूल्य, अध्यात्म और सनातन तत्वों को समावेशित करना लक्ष्य है.

सदैव यह सवाल उठता है कि आपने जीवन में कुछ बनाया, कुछ सृजन किया, क्रिएट किया? आपके जीवन से कुछ निर्मित हुआ? कुछ सृजित हुआ, कुछ बना, कुछ पैदा हुआ? जाे आप मिट जाएं और रहे, जाे आप न हाे और फिर भी हाे. इसलिए लगातार समाज को केन्द्र में रखकर कर्म करता हूं.

वैसे भी जिसके जीवन में जितनी सृजनात्मकता हाेती है, उसके जीवन में उतनी ही शांति और उतना ही आनंद हाेता है. जाे लाेग केवल मिटाते और ताेड़ते हैं, वे आनंदित नहीं हाे सकते हैं

 मेरा मानना है कि हम कुछ सृजन करते हैं, तब ईश्वर का अंश हममें काम करने लगता है और जाे  सारे जीवन काे सृजनात्मक बना देता है.

विगत 30 सालों से लगातार पढ़ने और लिखने का काम चल रहा है. पत्रकारिता के दौरान सैकड़ों आलेख लिखा. उसके अलावा भी 500 से अधिक आलेख और एक दर्जन किताब छप चुकी है. लेकिन अब भी कोशिश होती है कि कुछ निर्मित करें, कुछ बनाएं, जाे हमसे बड़ा हाे. आपका जीवन केवल समय का गूजरना न हाे, बल्कि एक सृजन हाे. वह सृजन चाहे छाेटा-सा क्यों न हाे, वह आपके प्रेम का कृत्य हाे. 

जाे लाेग जीवन में सृजनात्मक हाे पाते हैं, जाे लाग भी जीवन में छाेटे-से प्रेम के कृत्य काे निर्माण दे पाते हैं.

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