श्रीमती कलावंती सिंह भारतीय रेल के रांची रेल मण्डल के जनसंपर्क विभाग में कार्यरत हैं । घर परिवार और नौकरी के साथ उन्होने सतत सृजन से खुद को जोड़े रखा । जिसका प्रतिफल है उनका नवीनतम काव्य संग्रह – चालीस पार की औरत । शीर्षक कविता हिन्दी साहित्य में बहुत चर्चित प्रशंसित हो चुकी है। 

 आज रांची मण्डल के मण्डल रेल प्रबन्धक श्री नीरज अंबष्ठ को उन्होने पुस्तक भेंट की । इस मौके पर रांची मण्डल के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी श्री नीरज कुमार भी उपस्थित थे। मण्डल रेल प्रबन्धक ने इसकी सराहना की।

इस संग्रह की भूमिका साहित्य अकादमी अवार्ड से पुरस्कृत प्रसिद्ध कवयित्री अनामिकाजी ने लिखी है। उन्होने लिखा है – “ कलावंती की स्त्री केन्द्रित कवितायें एक सबल प्रतिपक्ष रचती हैं।”

स्त्री , बेटी, लड़कियां, पिता , मँझले भैया शीर्षक कवितायें हमारे आस पास के रिश्तों पर बुनी मार्मिक कवितायें हैं। ये कविता नई आत्मनिर्भर स्त्री की सत्ता को एक नए नजरिए से देखती है। उसके स्वतंत्र अस्तित्व की वकालत करती है। इन कविताओं में एक नयापन है , ताजगी है । एक प्रकार की लयात्मकता है जिससे कवितायें याद रह जाती हैं। इन कविताओं में एक प्रकार की सहजता है । सीधी सादी भाषा में लिखी ये कवितायें मन को छूती हैं। इन कविताओं में एक रागात्मकता दिखाई देती है । जीवन की विडंबनाओं को करुण भाव से देखती ये कवितायें मर्मस्पर्शी हैं।

बहुत कम उम्र से ही श्रीमती कलावंती सिंह की रचनाएँ हिन्दी की बड़ी पत्र- पत्रिकाओं में लगी थीं। इनहोने योगदा सत्संग कन्या विद्यालय से मैट्रिक , मारवाड़ी कन्या महाविद्यालय से बी ए व रांची विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम ए व पत्रकारिता की पढ़ाई की है। स्कूली जीवन से ही ये विभिन्न पत्र –पत्रिकाओं में कवितायें ,कहानियाँ ,लेख, आलोचना लिखती रही हैं। दो संयुक्त कविता संग्रहों “शब्द संवाद” व “शतदल” में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।

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