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पहली बात-अवैध खनन और ज़मीन की बेशुमार दलाली ही झारखण्ड की सबसे बड़ी बीमारी

तमाम गवाहों के बयानात और सबूतों की रोशनी में अदालत इस नतीजे पर पहुँची है कि...

सच तो यह है कि पुख्ता सबूतों और गवाहों के बयान के बिना किसी भी आरोपी को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन इससे भी अधिक वास्तविकता यही है कि, आरोपी के चेहरे, उसके हाव-भाव, उसके चेहरे की उड़ती हवाइयाँ, पूछे जानेवाले सवाल के दौरान कायम घबराहट और आसपास के माहौल अर्थात समूचे इको सिस्टम से एक ऐसा वातावरण तैयार हो जाता है जब किसी आरोपी को अपराधी ठहराना किसी जाँच एजेंसी के लिए शायद बहुत अधिक आसान हो जाता है.

झारखण्ड में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच-पड़ताल अद्भुत स्वरूप में सामने आ रही है. एक वैसा वातावरण तैयार होता जा रहा है जहाँ बहुत कुछ स्वाभाविक रूप से अपने-आप हो रहा है. ऑटो पायलट मोड में. एक ओर, प्रवर्तन निदेशालय द्वारा देश भर में अनेक स्थानों पर की गयी छापेमारी के बाद न केवल करोड़ों की नकदी बल्कि, अनेक महत्वपूर्ण दस्तावेज, डिवाइसेज आदि भी मिले हैं. उसमें से बहुत सारे संदेहास्पद हैं जो वस्तुतः इस जाँच एजेंसी के लिये सूत्रधार की भूमिका में हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि, उन दस्तावेजों के आधार पर अनेक ऐसे सवाल खड़े होते हैं जिसका जवाब ढूँढना ना केवल बहुत जरूरी है बल्कि, वह आरोपियों के लिए बहुत सारी मुश्किलें भी खड़ी कर रहा है. स्थिति ऐसी है कि एक जटिल सवाल का जवाब देने के चक्कर में बहुत सारे सवाल खड़े होते जा रहे हैं. सारे सवाल एक से बढ़कर एक हैं.

दूसरी ओर भारतीय निर्वाचन आयोग में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का जवाब पहुँच चुका है और महीने के अंत तक श्री सोरेन सहित झारखण्ड विधानसभा में सत्ता पक्ष के तीन विधायकों की पात्रता के सन्दर्भ में निर्णय आना है. तीसरी ओर झारखण्ड उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में भी विशेष रूप से ईडी की जाँच सहित अन्य अलग-अलग पहलुओं पर सुनवाई हो रही है. इस सम्पूर्ण मामले में पुख्ता तौर पर एक ही बात कही जा सकती है कि, मामले का कौन-सा तार कब, कहाँ जुड़ जाये? कुछ भी नहीं कहा जा सकता. 

हवाला कारोबार, मनी लॉन्ड्रिंग, शेल कंपनियों के मामले में ईडी अपनी जाँच-पड़ताल में बहुत आगे तक पहुँच गयी है. वहीं दूसरी ओर, अनेक आरोपियों के तार काफी गहरे हैं. विशेष रूप से खनन विभाग निशाने पर है जबकि उद्योग विभाग के तार, सारे मामले से कभी भी जुड़ सकते. जिस प्रकार से अनुसन्धान की आवश्यकता या प्रकृति के अनुसार, ईडी अधिकारियों द्वारा सम्मन या फिर बिना सम्मन के दर्जनों सम्बंधित लोगों से बुलाकर पूछताछ की जा रही है वह इतना जरूर बताता है कि दाग़ गहरे हैं. इसके अलावा पूछताछ से भागते साहिबगंज के जिला खनन पदाधिकारी (डीएमओ) विभूति कुमार के जैसे समाचार सामने आ रहे हैं वह ये बताने को पर्याप्त है कि बहुत सारे मामलों में दाल में काला नहीं है बल्कि पूरी दाल ही काली है.
दूसरी तरफ, यदि देखा जाये तो सत्ता-शासन के सिंहासन पर बैठे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जिस प्रकार सभी जिले के उपायुक्त और पुलिस अधीक्षकों को अवैध खनन और माफिया को हर हाल में रोकने का आदेश दिया है, वह सरकार की प्रतिबद्धता से कहीं अधिक सरकार की घबराहट को ही दर्शाता है.

किसी भी सरकार और प्रशासन की छवि बहुत महत्वपूर्ण होती है. पिछले लगभग तीन सप्ताह से सरकार की साख समाज के लगभग सभी वर्गों में गिरती जा रही है. लगता है जैसे हेमन्त सरकार वैसे चक्रव्यूह में घिर चुकी है जहाँ से उसका निकलना बहुत अधिक मुश्किलों भरा है.

सबसे पहले सीए सुमन सिंह और उसके बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा की वरिष्ठ अधिकारी पूजा सिंघल. फिर उसके बाद पूजा सिंघल के पति तथा पल्स हॉस्पिटल के कर्ताधर्ता अभिषेक झा. इन सबसे ईडी की बहुत लंबी पूछताछ के बाद एक बात तो सामने आ ही चुकी है. सभी कुछ सामान्य नहीं है. बहुत कुछ ऐसा है जिसे सामने आना बहुत जरूरी है. दूसरी महत्वपूर्ण बात जो सामने आयी है वह ये कि तार बहुत लंबे हैं... सूत्रधार कोई और है. ऊपर से चुनाव आयोग, उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियाँ.

...और जिस प्रकार से सभी अखबारों एवं न्यूज़ चैनल्स में समाचार आ रहे हैं उससे एक बात तो निश्चित रूप से कही जा सकती है कि, अभी दसियों पगडंडी तैयार हो रही है और पता नहीं कि कौन, कब, कहाँ, कैसे मुख्य मार्ग में जाकर मिल जाये और इस संपूर्ण मामले के महत्वपूर्ण किंगपिन या फिर यूँ कहिये कि, किंगपिन ग्रुप को पकड़ने की पहले से ही जारी तेज़ रफ़्तार और भी तेज़ हो जाये.

चाहे बोकारो का राम मंदिर मार्केट हो या फिर कोलकाता का एमजी रोड, गणेश चंद्र एवेन्यू या फिर रायगढ़, राउरकेला या देश के अन्य शहरों के पते. एक बात बहुत सामान्य है. ईडी की जाँच में कुल ऐसी 32 शेल कंपनियां अब तक सामने आ चुकी है जिसका इस सारे मामले में भयानक स्तर पर दुरूपयोग हुआ. इसमें कभी झामुमो के सत्ता-सिंहासन के नज़दीकी रहे रवि केजरीवाल की चार, राधाकृष्ण अग्रवाल की आठ, अमित कुमार अग्रवाल की छह, हेमन्त अग्रवाल की तीन और दशरथ अग्रवाल की दो कंपनियां प्रमुख है.

लगभग दो दशक से झारखण्ड में चाहे सरकार किसी की भी रही हो पर अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रही भारतीय प्रशासनिक सेवा की वरिष्ठ अधिकारी और अब निलंबित पूजा सिंघल, प्रवर्तन निदेशालय की रिमांड में है. न केवल अकेले बल्कि सीए सुमन सिंह, पति एवं पल्स हॉस्पिटल के कर्ताधर्ता अभिषेक झा के साथ ही, पाकुड़ और दुमका के जिला खनन पदाधिकारी (डीएमओ) के साथ भी आमने-सामने की पूछताछ की जा चुकी है. जबकि साहेबगंज के डीएमओ इस जाँच से लगातार भाग रहे हैं. 

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दो बार सम्मन के बाद भी वे अबतक उपस्थित नहीं हुए और अब ईडी उनसे पूछताछ के लिए नये रास्ते अपनाने की तैयारी में है. उधर अधिकांश शेल कंपनियों के तार सीधे-सीधे सत्ता के शीर्ष नेतृत्व के साथ जुड़े रहे हैं. हितों के टकराव के मामले में इलेक्शन कमीशन इस महीने के अंत तक न केवल मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन बल्कि उनके भाई एवं विधायक बसंत सोरेन और मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर के मामले में भी अपना निर्णय सुनानेवाला है.

झारखण्ड उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में भी सुनवाई जारी है और जिस प्रकार से न्यायालय के अंदर सुनवाई के दौरान का वातावरण है उसमें सरकार के लिए किसी भी दृष्टिकोण से अनुकूल परिस्थिति नहीं है.

कुल मिलाकर, ईडी जाँच के दायरे में कुल मिलाकर झारखण्ड सरकार का पूरा खनन विभाग है. इधर खनन विभाग के अफसरों ने अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत की तर्ज पर हजारीबाग, गिरिडीह, पलामू, साहिबगंज और चतरा जिले में अवैध खनन मामले पर 22 मई को धुआँधार छापेमारी की. खान विभाग की कार्रवाई में कितनी अधिक गंभीरता थी और अपनी नाक बचाने की जुगत में वह किस हद तक सफल रही, यह तो खैर वही जाने. 

लेकिन कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि पिछले विशेष रूप से तीन सप्ताह के दौरान झारखण्ड सरकार की नाक को बहुत अधिक कष्ट झेलना पड़ा है और अब तो आफत इस सरकार के जीवन पर ही है.

जल, जंगल, जमीन, खान-खदान, अनुकूल पर्यावरण, शानदार मौसम के साथ ही समृद्ध जनजातीय संस्कृति के मामले में बेहद समृद्ध और सबसे ज्यादा कुशल मानव संसाधन के मामले में भी देश के सबसे अग्रणी प्रांतों में से एक झारखण्ड.

पर दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से यह राज्य घोटाले का पर्याय बन गया है. तत्कालीन बिहार के भाग के स्वरुप की बात हो या फिर 15 नवम्बर 2000 को गठित झारखण्ड प्रदेश के बाद के समय की. झारखण्ड में केवल चारा घोटाला ही नहीं हुआ बल्कि बहुत सारे घोटाले हुए और इस झारखण्डी ज़मीन को बहुत सारे लोगों, नेताओं, अधिकारियों, ठेकेदारों और अपराधियों ने जमकर दुहा है. इसका सीधा-सीधा खामियाजा उठाना पड़ा है यहाँ के अपेक्षाकृत भोले-भाले लोगों को जिनमें सभी योग्यता और सामर्थ्य होते हुए भी उनके जीवन स्तर पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ा.

 कहने को तो 15 नवम्बर 2000 को भारत के 28 में प्रदेश के रूप में गठित झारखण्ड प्रदेश यहाँ के मूल जनजातीय निवासियों के हित के लिए बनाया गया था. एक वैसा प्रदेश जहाँ न केवल उनके हितों का पूरी तरीके से संरक्षण होगा बल्कि, यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का कहीं अधिक बेहतर तरीके से सदुपयोग होगा और यह भारत का एक ऐसा प्रदेश बनेगा जो न केवल स्वयं में समृद्ध होगा बल्कि राष्ट्र को भी आत्मनिर्भर बनाने में यह अपना सबसे महत्वपूर्ण योगदान देगा. लेकिन हुआ बिलकुल उलटा. 

यहाँ पदस्थापित भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारियों में अनेक वैसे थे जिनके दिल-दिमाग़ में झारखण्ड की जमीन और यहाँ के लोगों के प्रति सकारात्मक भावना नहीं थी. बल्कि उनका नजरिया पूरी तरीके से लालच, झूठ, लूट पर ही आधारित था. फलतः उन्होंने न केवल जमकर लूटा बल्कि नेताओं के साथ उनका एक ऐसा गठजोड़ स्थापित हुआ जहाँ अनेक नेताओं ने, जिनके हाथ में सत्ता थी उन्होंने अपने हाथ साफ किये. शायद यही कारण है कि आज यहाँ गहरी खामोशी छायी है क्योंकि ना जाने कब ईडी का आमंत्रण किसी को मिल जाये कि, हवेली पर हाजिर हो. पूछताछ करनी है. खौफ बहुतों के दिल-दिमाग में है. 

विशेष रूप से पूरा का पूरा खान विभाग और एक हद तक उद्योग विभाग के साथ ही पता नहीं कब, किसके तार, किसके साथ जुड़ जायें और ईडी की संपूर्ण जाँच, कब, किस दिशा में घूम जाये?

 

यह तो हुई सम्पूर्ण परिवेश और वातावरण की बात. लेकिन अब बात दूसरी लेकिन वह सकारात्मक परिप्रेक्ष्य में. लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि, सकारात्मकता से भरी इन बातों को भी नकारात्मकता से ही कहना होगा. झारखण्ड की एक बड़ी आबादी, अपने एक-एक दिन के संघर्ष के बलबूते आगे बढ़ रही है. दूसरी ओर झारखण्ड को प्रकृति ने अपने हाथों से इस प्रकार से गढ़ा है कि यह बहुत अधिक खूबसूरत होने के साथ-साथ बहुत अधिक उर्वर है. जहाँ समृद्धि, मिट्टी के कण-कण में है.

लेकिन आज इस की वैसी परिस्थिति हो गयी है जहाँ सिंहासन से प्रशासन के गलियारे तक हर ओर एक ऐसा वातावरण है जहाँ सिर्फ घोटाला, डर और खौफ का वातावरण है. सपना उत्साह और उमंग तो जैसे बहुतों के मरते जा रहे हैं और दिल में कुछ कर गुजरने की तमन्ना भी जैसे अपना दम स्वयं ही घोंट रही है. जब मैं इन पंक्तियों को यहाँ लिख रहा हूँ तो, अख़बार में छपी एक खबर के अनुसार हजारीबाग का एक व्यक्ति इस कारण से बहुत अधिक परेशान है कि उसके बाइक के डुप्लीकेट नंबर वाली बाइक तैयार कर कुछ लुटेरे रांची और रामगढ़ में छीन-झपट कर रहे हैं. हजारीबाग का वह व्यक्ति अपने परिवार के साथ अपनी बाइक को एसपी के कार्यालय में जमा कराने पहुँचा है ताकि बेकसूर होकर भी पुलिस के शिकंजे में फँसने का उसका ख़ौफ़ ख़त्म हो.

कहने को तो यह छोटी-सी बात है जो केवल एक व्यक्ति के साथ घटी हुई घटना है. लेकिन वास्तविकता यह है कि, विशेष रूप से झारखण्ड में ऐसी छोटी-छोटी और टुच्चई वाली घटनाओं के बीच ही एक बड़ी आबादी अपने जीवन को गुजार रही है. कब सुबह से शाम, सप्ताह महीने और साल गुजर जाते हैं... पता ही नहीं चलता. रोटी-रोजगार, पलायन-विस्थापन का दर्द तो खैर है ही. यह भी संभव है कि यह छोटी-सी घटना आपको अपील न करें तो एक दूसरी घटना आपके लिए पेश है.

झारखण्ड के जामताड़ा सहित राज्य के अन्य जिलों और क्षेत्रों के साइबर अपराधियों ने देश के अनेक हिस्सों में अपनी नकारात्मक कारस्तानी की छाप छोड़ी है. लोगों के फ़ोन या लैपटॉप में घुसकर बहुतों को लूटा है. देश के बहुत सारे थाने में उनके नाम से रपट दर्ज है अर्थात साइबर क्राइम के मामले में एक से बढ़कर एक घटनाएँ. और ज़बरदस्त बात ये कि, बदलते परिवेश के अनुसार ये साइबर क्रिमिनल्स अपने-आप को बदलने में बहुत अच्छी तरीके से माहिर हैं. 

नवीनतम खबर ये है कि, खान विभाग के अनेक अधिकारियों को फोन कर ये रणबाँकुरे (?) ईडी को मैनेज करवाने और उन्हें गवाही या पूछताछ में ना बुलाने, मामला रफ़ा-दफ़ा करने की शर्तिया गारंटी देने में लगे हैं. लेकिन इसके साथ ही एक मोटी रकम भी सम्बंधित लोगों से माँग रहे हैं ये.

ऐसे एक से बढ़कर एक मामले हैं लेकिन सोचनेवाली बात यह है कि विशेष रूप से खान-खनिज संपदा में अपनी अच्छी-खासी हैसियत रखनेवाले झारखण्ड के लिये उसकी समृद्ध विरासत और विराट धरोहर, उसका पर्यावरण और कुशल मानव संसाधन भी है. चारा घोटाला में तो भाई लोग गाय-भैंस का चारा खा गये और स्कूटर-कार पर भैंस-बैल की ढुलाई कर होनहारों ने टप्पा-गप्पा कर सरकारी माल खाया-खपाया.

लेकिन इस मामले में ये खान-खदान की वर्तमान लेकिन लम्बे समय से चली आ रही कारस्तानी बहुत अधिक आत्मघाती है. अवैध खनन ऐसा घोटाला है जिसने न केवल झारखण्ड के आत्मसम्मान बल्कि इसकी समृद्ध विरासत और विशेषता पर भी कुठाराघात किया है. आज भले ही ईडी कार्यालय के आसपास मजमा लगा हो और लोग कौतूहल और रोमांच के साथ ईडी की एक-एक गतिविधि पर नजर रखे हुए हैं. या फिर अखबार के पन्नों को पलट रहे हों, चैनल्स देख रहे हों. लेकिन वास्तविकता यह है कि, इस घोटाले ने झारखण्ड में बहुत सारे लोगों के आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को तोड़ा है. जिनके मन में कभी यह दृढ़ धारणा थी कि, सीधे रास्ते पर चलकर उपलब्धियाँ प्राप्त की जा सकती है.

सच्चाई यह भी है कि, झारखण्ड गठन के बाद ही नहीं बल्कि उससे पहले से ही यहाँ जिस प्रकार से जमीन के दाम और जमीन के कारोबार में तेजी आयी उसके बाद जैसे राज्य का हर छठवा-सातवाँ व्यक्ति जमीन कारोबारी बनना चाहता है और इसके बलबूते पर एक मोटी रकम कमाकर, अपेक्षाकृत आरामदायक और सुविधाजनक जिंदगी जीना चाहता है. 

अब नीम पर करेले वाली बात यह भी है कि, पहले जहाँ एक बड़ी आबादी खान-खदान के धंधे में घुसकर अपने-आप को कुबेर बनाने के चक्कर में थी वहीं छापेमारी के बाद आते समाचारों की सुर्खियों के बाद बहुत सारे लोग इन सब गतिविधियों को ही आज की वास्तविकता मान रहे हैं. जहाँ एमएसएमई, स्टार्टअप और ऐसी बातें जहाँ आज की हक़ीक़त है वहीं झारखण्डी अख़बारों की सुर्खियाँ जैसे आम जनमानस की एक बड़ी आबादी के लिये स्लो पॉइज़न का काम कर रही है. सकारात्मक, रचनात्मक, क्रियात्मक जैसी बातें जैसे तेल लेने चली गयी. मानसिकता में घुलता ये ज़हर बहुत घातक है. वर्तमान के लिये और भविष्य के लिये भी.

चाहे पेड़ कटाई का मामला हो या घपले-घोटाले का या फिर, वैसे अधिकारियों को संरक्षण देने का. प्रशासनिक अधिकारियों की साख रसातल में चली गयी. भाजपा के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के नजदीकी पाँच वैसे आईएएस अधिकारियों की सूची सौंपी है जिनके ऊपर घोटाले को संरक्षण देने और उसमें शामिल होने का आरोप लगाया गया है. राजनीतिक स्तर की बातें करें तो, यह घोटाला जिस रूप में सामने आया है उसमें न केवल झारखण्ड मुक्ति मोर्चा बल्कि भारतीय जनता पार्टी के अनेक नेताओं की साख को भी बट्टा लगा है.

केवल स्लोगन के बलबूते पर उड़ान भरनेवाले नेताओं के चेहरे की हवाइयाँ उड़ी हुई है और झारखण्ड विधानसभा में विपक्ष के नेता के पद लिए जद्दोजहद कर रहे राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के एक ट्वीट से ही झारखण्ड के वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व के संदर्भ में अपनी धारणा को कोई भी तैयार कर सकता है. अपने एक ट्वीट में श्री मरांडी ने कहा है कि, वाह!मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी. आपका "अवैध खनन हुआ तो अफसरों की खैर नहीं" वाला बयान तो सत्तर चूहे खाकर बिल्ली हज को चली वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है. ऐसी बयानबाजी कर किसे बेवकूफ बना रहे हैं आप? कलई खुलने लगी तो बैकफुट पर काहे जा रहे हैं? पब्लिक सब जान गई है.

कुल मिलाकर खान-खनिज के मामले में बेहद समृद्ध झारखण्ड, अनेक लोगों के लिए लंबे अर्से से एक दुधारू गाय बना है. जो उसे दूहते समय इस बात का भी ख्याल नहीं करते कि जान पर आफत आ सकती है. जिन लोगों का झारखण्ड की आबोहवा से कोई सरोकार नहीं... उनमें से अधिकांश ने जमकर शोषण किया. बल्कि झारखण्ड के अनेक मूल निवासियों को भी अपनी उस लत का शिकार बना दिया जहाँ वे आसानी से पैसा कमाना चाहते हैं. चाहे इसके लिये अपने साथ, या सभी के साथ, या फिर झारखण्ड के साथ ही छल क्यों न करना पड़े? नतीजा झारखण्ड की छाती को चीरकर उसकी संपदा को, गैर-कानूनी रूप से सभी नियम-कायदों को ताकपर रखकर निकाल लेना ही बहुतों की फितरत में शामिल है.

उधर झारखण्ड में एक बड़ी आबादी जब घर से बाहर निकलती है तो उसकी आँखों में केवल एक ही सपना होता है. आज किसी जमीन की दलाली का उसका सपना साकार हो जाये और एक मोटी रकम उसके पास आ जाये. जंगल कट रहे हैं और कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं.
...और मामले में यदि पल्स हॉस्पिटल को जोड़ दिया जाये तो यह स्पष्ट हो चुका है कि, कुल मिलाकर झारखण्ड में जमीन और खदान के मामले में हर नियम-कानून, मान्यता-परंपरा के साथ ही लोगों के सपने को भी चूल्हे में झोंक दिया गया है.

( पूरा लेख से जुड़ी सोंच लेखक संतोष दीपक का है)

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